कानूनी आतंकवाद: कानून का हथियार के रूप में दुरुपयोग

न्याय प्रणाली को न्याय दिलाने के लिए बनाया गया था, लेकिन आज के भारत में, इसे व्यक्तिगत प्रतिशोध, प्रतिष्ठा नष्ट करने और विरोधियों को कुचलने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कानूनी प्रावधानों का यह जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण दुरुपयोग कानूनी आतंकवाद के अलावा कुछ नहीं है—कानून का ऐसा निर्मम शोषण जो निर्दोष व्यक्तियों, परिवारों, व्यवसायों और यहां तक कि राजनीतिक विरोधियों को डराने और परेशान करने के लिए किया जाता है। बतौर वकील, यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इस अन्याय को उजागर करें और इसका विरोध करें।

1. दहेज कानून का जाल (धारा 498ए आईपीसी)

आईपीसी की धारा 498ए को दहेज उत्पीड़न से महिलाओं की रक्षा के लिए पेश किया गया था। लेकिन जब इसे जबरन वसूली के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है तो क्या होता है? निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को बिना जांच-पड़ताल के जेल में डाल दिया जाता है, उनकी प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है और शादियां युद्ध का मैदान बन जाती हैं। स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने इसे “कानूनी आतंकवाद” करार दिया है। राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017) में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि ऐसे मामलों में बिना उचित जांच के तत्काल गिरफ्तारी से बचना चाहिए।

2. पीआईएल: जनहित या व्यक्तिगत एजेंडा?

जनहित याचिकाएं (PIL) नागरिकों को अन्याय के खिलाफ सशक्त बनाने के लिए बनाई गई थीं, लेकिन आज, उनका उपयोग व्यवसायों को ब्लैकमेल करने, विकास परियोजनाओं को बाधित करने और व्यक्तिगत प्रचार हासिल करने के लिए किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तरांचल राज्य बनाम बलवंत सिंह चौफल (2010) में कहा कि केवल वास्तविक जनहित याचिकाएं ही अदालत में स्वीकार की जानी चाहिए और इनके दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए।

3. फर्जी अत्याचार मामले (SC/ST अधिनियम)

अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का उद्देश्य वंचित समुदायों की रक्षा करना था, लेकिन दुर्भावनापूर्ण व्यक्तियों के हाथों में, यह एक कानूनी हथियार बन गया है। सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2018) में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम के तहत बिना जांच के स्वतः गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए।

4. यौन उत्पीड़न कानूनों का हथियार बनाना

POSH अधिनियम और आईपीसी की संबंधित धाराएं महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाई गई थीं। लेकिन अब इनका उपयोग व्यक्तिगत विवादों और कार्यस्थल में बदला लेने के लिए किया जा रहा है। मोहम्मद जाकिर बनाम कर्नाटक राज्य (2018) में, सुप्रीम कोर्ट ने झूठे यौन उत्पीड़न मामलों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की।

5. आतंकवाद विरोधी कानूनों का दमनकारी उपयोग

UAPA, NSA, और PMLA जैसे कानून आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए बनाए गए थे। हालांकि, इनका उपयोग असहमति जताने वालों, कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है। भारत संघ बनाम के.ए. नजीब (2021) में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि UAPA के तहत आरोपियों को अनिश्चितकाल तक जेल में नहीं रखा जा सकता।

6. कॉरपोरेट SLAPP मुकदमे: अमीरों का कानूनी आतंकवाद

बड़ी कंपनियों ने मानहानि और SLAPP (Strategic Lawsuits Against Public Participation) मुकदमों को कानूनी आतंक का उपकरण बना दिया है। एस. खुशबू बनाम कनियामल (2010) में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मानहानि के झूठे मुकदमों का उपयोग स्वतंत्र भाषण को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

7. घरेलू हिंसा कानून को तलाक के हथियार के रूप में इस्तेमाल करना

घरेलू हिंसा अधिनियम महिलाओं को हिंसा से बचाने के लिए था, लेकिन अब इसे तलाक की रणनीति के रूप में उपयोग किया जा रहा है। धनंजय कुमार शुक्ल बनाम बिहार राज्य (2018) में, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि झूठे घरेलू हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं और उनकी कठोर जांच की जानी चाहिए।

8. मानहानि मामले: दमन का एक औजार

मानहानि कानूनों का उद्देश्य प्रतिष्ठा की रक्षा करना है, लेकिन इनका उपयोग स्वतंत्र भाषण को दबाने के लिए किया जा रहा है। पेप्सिको इंडिया होल्डिंग्स प्रा. लि. बनाम हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेजेज प्रा. लि. (2010) में, सुप्रीम कोर्ट ने व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता में मानहानि मुकदमों के दुरुपयोग की निंदा की।

समाधान: कानूनी आतंकवाद को रोकने के लिए आवश्यक कदम

न्यायपालिका को कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए:

  1. झूठे मामलों के लिए सख्त दंड – झूठे मामले दर्ज करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।
  2. गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जांच – विशेष रूप से दहेज, घरेलू हिंसा और अत्याचार मामलों में बिना जांच के गिरफ्तारी रोकी जाए।
  3. फर्जी पीआईएल पर सख्त जुर्माना – बेबुनियाद जनहित याचिकाओं पर भारी आर्थिक दंड लगाया जाए।
  4. आतंकवाद विरोधी कानूनों का संतुलित प्रवर्तन – इन्हें राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग करने से रोका जाए।
  5. स्वतंत्र भाषण की रक्षा – पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को झूठे मानहानि और SLAPP मुकदमों से सुरक्षा दी जाए।

निष्कर्ष

कानूनी आतंकवाद न्याय, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। बतौर वकील, हमें कानून के भ्रष्ट दुरुपयोग का विरोध करना चाहिए और न्याय प्रणाली में निष्पक्षता बहाल करने के लिए लड़ना चाहिए। कानून निर्दोषों के लिए ढाल होना चाहिए, न कि बदला लेने वालों के लिए तलवार। अब समय आ गया है कि हम इस समस्या के खिलाफ आवाज उठाएं!

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