वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: संवैधानिकता पर मंडराता सवाल
— एक अधिवक्ता की दृष्टि से विश्लेषणात्मक लेख


भूमिका

भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को उनकी धार्मिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को स्थापित और संचालित करने का मौलिक अधिकार देता है। इसी संवैधानिक भावना में वक्फ अधिनियम 1995 का जन्म हुआ, जो मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों को संरक्षित करता है। परंतु, हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में एक संवैधानिक जाँच आरंभ हो चुकी है, जिसमें इसके कई प्रावधानों को मौलिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया है।


आज की सुनवाई (17 अप्रैल 2025): महत्वपूर्ण घटनाक्रम

सुप्रीम कोर्ट की पीठ — मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति पी.वी. संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की अध्यक्षता में — वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान निम्नलिखित निर्णय और टिप्पणियाँ सामने आईं:

  • केंद्र सरकार को नोटिस: केंद्र सरकार को सभी याचिकाओं का विस्तृत उत्तर प्रस्तुत करने के लिए 7 दिन का समय प्रदान किया गया।
  • सीमित याचिकाओं पर सुनवाई: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वर्तमान में दायर 70 से अधिक याचिकाओं में से केवल 5 प्रतिनिधि याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी ताकि विषय-वस्तु पर केंद्रित और प्रभावी बहस हो सके।
  • ‘यथास्थिति’ का संकेत: सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि यदि आवश्यक हुआ तो कुछ प्रावधानों पर अंतरिम आदेश पारित किए जा सकते हैं।
  • अगली सुनवाई: 5 मई 2025 को नियत की गई है।

प्रमुख विवादास्पद प्रावधान एवं संवैधानिक आपत्तियाँ

1. गैर-मुस्लिम सदस्यों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति

यह प्रावधान अनुच्छेद 26(b) के तहत धार्मिक संस्थाओं को अपने धार्मिक मामलों का संचालन स्वयं करने के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन प्रतीत होता है।

2. ‘वक्फ बाय यूज़र’ प्रावधान का निष्कासन

यह हटाया गया प्रावधान उन संपत्तियों की रक्षा करता था जो ऐतिहासिक रूप से मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तान आदि के रूप में प्रयुक्त होती आ रही थीं। इसके हटने से हजारों धार्मिक संपत्तियाँ विवाद में आ सकती हैं, जिससे अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक आस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

3. विवादित संपत्तियों पर कलेक्टर का निर्णय अंतिम

यह प्रावधान न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के प्रतिकूल है, क्योंकि इससे निष्पक्ष न्याय तक पहुँचने का अधिकार सीमित हो जाता है।

4. दानकर्ता के लिए ‘5 वर्ष से इस्लाम धर्म में आस्था’ की शर्त

यह अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता है। कोई व्यक्ति यदि हाल ही में मुस्लिम बना है और किसी उद्देश्य से वक्फ संपत्ति दान करना चाहता है, तो यह प्रावधान उसे रोकता है।


याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत पक्ष

कई राजनीतिक दलों और धार्मिक संगठनों — जैसे AIMIM, DMK, कांग्रेस, जमीयत उलेमा-ए-हिंद आदि — ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दाखिल कर कहा है कि यह संशोधन अधिनियम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर आक्रमण है और संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।


सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि इन संशोधनों का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकना, पारदर्शिता बढ़ाना और बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करना है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि सरकार याचिकाओं पर जल्द उत्तर दाखिल करेगी।


एक अधिवक्ता की टिप्पणी

विधि का मूल सिद्धांत यह है कि राज्य धार्मिक मामलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक वह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के लिए आवश्यक न हो। वक्फ बोर्ड जैसे धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता एक संवेदनशील विषय है, और इसमें किसी भी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप संवैधानिक रूप से न्यायसंगत होना चाहिए।

संशोधन अधिनियम में कुछ प्रावधान ऐसे प्रतीत होते हैं जो न केवल मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता को बाधित करते हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया और निष्पक्ष प्रशासन के सिद्धांतों के भी प्रतिकूल हैं।


निष्कर्ष

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की यह कार्यवाही सिर्फ एक कानून की वैधता का परीक्षण नहीं है, बल्कि यह इस बात की परीक्षा भी है कि भारत का धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र किस हद तक धार्मिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा कर सकता है। आगामी सुनवाईयाँ इस पर प्रकाश डालेंगी कि क्या संविधान की मूल भावना और अल्पसंख्यक अधिकार सुरक्षित रह पाएँगे या नहीं।


लेखक: अमरेष यादव
पद: अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट न्
विशेषज्ञता: संवैधानिक , आपराधिक और सिविल मामले  Mobile:9953084083


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