ISI का खेल और मीडिया की चुप्पी – या फिर ISI के इशारे पर रचा गया नैरेटिव?

लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट
जब गोलियाँ आतंकवादी चलाते हैं और नैरेटिव मीडिया सेट करता है – तो शक सिर्फ सुरक्षा तंत्र पर नहीं, बल्कि टीवी स्टूडियोज़ में बैठे “देशभक्त पत्रकारों” पर भी होना चाहिए।
आज आतंकवाद का सबसे बड़ा साझेदार अगर कोई है, तो वह है – न्यूज रूम में बैठा वह एंकर जो ISI के एजेंडे को “राष्ट्रवाद” की चादर में लपेटकर परोसता है।
1. आतंकी हमला – ISI की स्क्रिप्ट, भारतीय मीडिया का मंचन
जैसे ही कश्मीर में हमला होता है, मीडिया तुरंत “धर्म पूछा गया” की स्क्रिप्ट पर उतर आता है।
- न खुफिया विफलता की चर्चा
- न बॉर्डर सिक्योरिटी की बात
- न ISI की भूमिका पर सवाल
बल्कि मीडिया वही करता है जो ISI चाहता है: देश को अंदर से बाँटो, जनता का ध्यान भटकाओ, और सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालो।
2. क्या TRP के नाम पर ISI का एजेंडा बिक रहा है?
TRP के लिए कोई भी सीमा पार कर देने वाली मीडिया आज ISI की प्रॉक्सी बन चुकी है।
- आतंकी हमला होता है, और न्यूज़ रूम में “मुस्लिम नाम” की तलाश शुरू हो जाती है।
- शहीद का धर्म दिखाया जाता है, आतंकवादी की पृष्ठभूमि नहीं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा को सांप्रदायिक बहस में घसीट दिया जाता है।
क्या यह सिर्फ पत्रकारिता है? या भारत के खिलाफ एक सॉफ्ट पावर वॉरफेयर का हिस्सा?
3. जब मीडिया ISI के इशारे पर डायलॉग बोलता है…
- “धर्म पूछा गया!”
- “हिंदू पर्यटक को निशाना बनाया गया!”
- “मुस्लिमों को छोड़ा गया!”
ये डायलॉग आतंकियों के नहीं – भारतीय मीडिया के हैं!
ISI को इससे बेहतर सहयोगी कभी नहीं मिला होगा।
उनकी रणनीति है – भारत को भीतर से तोड़ो, और हमारी मीडिया उसमें मददगार बन चुकी है।
4. सत्ता की चुप्पी = मीडिया की ढाल?
जब सरकार असफल होती है, मीडिया “धर्म” का कार्ड खेलता है।
जब ISI ऑपरेशन करता है, मीडिया “मजहब” का शोर मचाता है।
और इस गठजोड़ में असली मुद्दे –
- सुरक्षा की विफलता
- राजनीतिक जिम्मेदारी
- ISI के पैठ
– सब गायब हो जाते हैं।
निष्कर्ष: मीडिया को राष्ट्रवाद का ठेका देने से पहले पूछो – कहीं वो ISI का स्क्रिप्ट राइटर तो नहीं?
भारत की जनता को अब समझना होगा कि
हर “धर्म पूछने” वाली हेडलाइन, दरअसल उस दुश्मन की गोली है जो सीमा पार बैठा है – पर चला रहा है रिमोट कंट्रोल हमारे स्टूडियो से।
अब वक्त है – इस ISI-मीडिया गठबंधन को उजागर करने का।
लेखक परिचय:
अधिवक्ता अमरेष यादव सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंरिक राजनीति, और मीडिया विश्लेषण पर निर्भीक और तथ्य-प्रधान लेखन के लिए पहचाने जाते हैं।
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