“क्या भारत में सांप्रदायिक उन्माद ISI की स्क्रिप्ट पर चल रहा है?”

लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव
जब भी देश किसी बड़े आतंकी हमले से हिलता है, मीडिया और सत्ताधारी वर्ग की प्रतिक्रिया एक जैसी होती है—धार्मिक पहचान पर ज़ोर, और असली सुरक्षा चूक की पूरी तरह अनदेखी। लेकिन क्या यह महज़ एक संयोग है? या फिर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का वह सुनियोजित खेल, जिसमें भारत के भीतर सांप्रदायिक दरार को हथियार बनाया जा रहा है?
1. ISI की चाल: भारत को भीतर से तोड़ो
ISI का पुराना एजेंडा रहा है:
- आंतरिक विद्वेष पैदा करो,
- धार्मिक नफरत को हवा दो,
- भारत की सुरक्षा रणनीति को भीतर से कमजोर करो।
अब ज़रा सोचिए, जब कोई आतंकी हमला होता है और देश की मीडिया जाति या धर्म गिनने लगती है,
- क्या वह भारत की एकता को तोड़ने वाला काम नहीं कर रही?
- क्या यह ISI की किताब का वही पुराना पन्ना नहीं है?
2. मीडिया और नेता – ISI की स्क्रिप्ट के कलाकार?
जो मीडिया और नेता हर आतंकी घटना के बाद सिर्फ धर्म पूछे जाने को प्रमुख खबर बनाते हैं, वे अनजाने में या जान-बूझकर एक बहुत बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बन जाते हैं।
क्या उन्होंने कभी पूछा:
- किस स्तर की सुरक्षा चूक हुई?
- खुफिया इनपुट किसने नजरअंदाज किए?
- हमला रोकने में किसकी नाकामी थी?
नहीं!
क्योंकि उन्हें TRP और वोट बैंक की फ़िक्र है – देश की नहीं।
3. ISI को चाहिए भारत का “अंदरूनी दुश्मन”
जिनका धर्म देखकर गुस्सा फूटता है, लेकिन देश की सुरक्षा चूक पर चुप्पी साध लेते हैं – वही ISI के असली मोहरे हैं।
ISI जानती है कि भारत को सीमा पर नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर बाँट कर तोड़ा जा सकता है।
और जब हमारे अपने लोग, मीडिया चैनल, और नेता इस काम को अंजाम दें,
तो क्या फर्क रह जाता है ISI के एजेंट और इन कथित “देशभक्तों” में?
4. असली देशभक्ति क्या है?
- सुरक्षा चूक पर सवाल उठाना।
- धर्म नहीं, राष्ट्रीय नीति की बात करना।
- नफरत नहीं, जवाबदेही की मांग करना।
अगर आप सच में भारत से प्रेम करते हैं,
तो ISI की स्क्रिप्ट को दोहराने वालों से सवाल कीजिए,
न कि उस भीड़ में शामिल हो जाइए जो देश को भीतर से खोखला कर रही है।
निष्कर्ष: समय है पहचानने का
अब फैसला आपके हाथ में है –
आप भारत के नागरिक हैं या ISI की स्क्रिप्ट के किरदार?
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