“धर्म पूछकर गोली: ISI की साजिश, मीडिया की मिलीभगत और भारत की रणनीतिक चूक”


भारत में जब भी कोई आतंकी हमला होता है, खासकर जब हमलावर ‘धर्म पूछकर’ गोली मारते हैं या ‘कलमा पढ़ने’ को कहते हैं — तो समझ लीजिए कि यह सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की एक गहरी मनोवैज्ञानिक और सामरिक योजना का हिस्सा है। और दुखद सत्य यह है कि भारत का अपना मीडिया और सत्ताधारी दल के नेता इस योजना के पक्के किरायेदार बन चुके हैं।


1. धर्म पूछकर मारना — संयोग नहीं, सोची-समझी साजिश

आप सोचते हैं कि आतंकियों का “धर्म पूछना” महज़ नफरत है? नहीं! ये नफरत तो सिर्फ आवरण है — असल में ये ISI की सर्जिकल साइकोलॉजिकल स्ट्राइक है। इसका एक-एक हिस्सा स्क्रिप्टेड है:

  • “धर्म पूछा गया!”
  • “कलमा पढ़ो वरना गोली!”

ये संवाद नहीं हैं — ये कम्युनल प्रोपेगैंडा के ट्रिगर पॉइंट हैं। ISI को पता है कि भारत की मीडिया और उसकी राजनीति अब उतनी ही धार्मिक रूप से विभाजित और ज्वलनशील हो चुकी है जितनी वे चाहें। बस एक चिंगारी चाहिए — और मीडिया खुद बारूद बना हुआ है।


2. मीडिया — ISI के हाथों की कठपुतली?

हमारा मीडिया इस पूरे खेल में ISI की स्क्रिप्ट का मुख्य अभिनेता बन चुका है। आतंकी हमले के बाद एक सुर में वही दोहराव:

  • “धर्म पूछा गया!”
  • “हिंदुओं को निशाना बनाया गया!”
  • “मुसलमानों ने जान बचाई!”

इन खबरों में तथ्य कम और भावनात्मक विष ज़्यादा होता है। रिपोर्टिंग के नाम पर बंटवारे का अभियान चलता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आतंकी गोली नहीं चला रहे — ब्रेकिंग न्यूज़ चला रहे हैं, और ऐंकर उसका प्रमोशन।


3. बीजेपी नेता — राष्ट्रवाद नहीं, ध्रुवीकरण के सौदागर

सत्तारूढ़ दल के नेता भी इस मास्टर प्लान का हिस्सा बन जाते हैं। बिना किसी तथ्य के सीधे धार्मिक ध्रुवीकरण का एजेंडा लहराने लगते हैं:

  • कोई कहेगा, “हिंदू टारगेटेड हैं।”
  • कोई चिल्लाएगा, “घुसपैठिए मुसलमान जिम्मेदार हैं।”

आतंकी का असली नाम, स्रोत, रणनीति, ISI लिंक — सबका विश्लेषण फुटनोट में दबा दिया जाता है। मुख्य मंच पर धार्मिक प्रलय का नाटक चलता है।

क्या यही है राष्ट्र सुरक्षा?


4. ISI की असली योजना: भारत को भारत से ही लड़वाओ

ISI जानता है कि भारत को सैन्य युद्ध में हराना कठिन है। लेकिन अगर भारत को भारत के ही अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा कर दिया जाए, तो:

  • देश की आंतरिक स्थिरता हिलेगी
  • मुस्लिम युवाओं में अलगाववाद की भावना भरेगी।
  • युद्ध के दौरान ISI को भारत में स्थानीय समर्थन मिलने लगेगा।
  • अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि ‘हिंदू राष्ट्र’ के रूप में विकृत हो जाएगी।

ये Soft Civil War की तैयारी है — और इसमें मीडिया और सत्ता दोनों ने ISI को मंच दे दिया है।


5. भारत की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक

भारत का खुफिया तंत्र हो या रणनीतिक नीति-निर्माता, सबको यह समझना होगा:

  • आतंकवाद केवल बम और बंदूक नहीं — विचारों और भावनाओं का हथियार भी है।
  • धर्म आधारित रिपोर्टिंग, बयानबाज़ी और टारगेटिंग से भारत अपना ही सामाजिक ताना-बाना तोड़ रहा है।
  • इस खाई में जब जहर भरा जाएगा, तब भारत स्वयं आतंकवाद के लिए उर्वर ज़मीन बन जाएगा।

निष्कर्ष: यह समय है चेत जाने का — नहीं तो देर हो जाएगी!

“धर्म पूछा गया” — यही अगर आपकी ब्रेकिंग न्यूज़ है, तो समझिए कि ब्रेक तो भारत के सामाजिक ढांचे में लग रहा है।
मीडिया को चाहिए कि वह ISI की स्क्रिप्ट जला दे, और राष्ट्रीय हित की भूमिका निभाए।
और सरकार को चाहिए कि वह ध्रुवीकरण नहीं, रणनीति से आतंकी चुनौती का जवाब दे।

वरना अगला हमला सिर्फ सीमा पर नहीं, भारत की आत्मा पर होगा।

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