नेहा सिंह राठौर के साथ खड़ा होना: लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा

भारत का लोकतंत्र अपनी विविधता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है। लेकिन जब एक भोजपुरी लोक गायिका, नेहा सिंह राठौर, जो समाज के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी आवाज उठाती हैं, उन्हें ‘देशद्रोह’ जैसे आरोपों का सामना करना पड़ता है, तो यह केवल उनके खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ हमला है। आइए, इस मामले को एक कानूनी दृष्टिकोण से समझते हैं और देखते हैं कि क्यों हमें नेहा सिंह राठौर का समर्थन करना चाहिए।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: लोकतंत्र की नींव
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इस अधिकार के तहत हर नागरिक को अपने विचार, विश्वास और राय को व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। नेहा सिंह राठौर ने अपने गीतों और सोशल मीडिया के जरिए समाज के कड़े मुद्दों जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, भ्रष्टाचार और समाज में व्याप्त असमानताओं पर सवाल उठाए हैं। उनके गीतों जैसे “यूपी में का बा” और “बिहार में का बा” ने समाज में व्याप्त कुरीतियों और विषमताओं को उजागर किया है।
इसमें कोई शक नहीं कि सरकार की आलोचना करना और समाज की खामियों को उजागर करना हर नागरिक का अधिकार है। अगर इस अधिकार को दबाया जाता है, तो यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर हमला है।
सच बोलने की हिम्मत और उस पर हमला
नेहा सिंह राठौर ने 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार की सुरक्षा नीतियों पर सवाल उठाया था। उनका कहना था कि इस घटना का इस्तेमाल बिहार चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया जा सकता है। यह एक वैध राजनीतिक विश्लेषण था, न कि देशद्रोह।
लेकिन इसके बाद संघी आईटी सेल ने नेहा के खिलाफ नफरत फैलाने की एक सुनियोजित मुहिम चलाई। उनकी छवि को बदनाम करने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया, और यह साबित करता है कि जब कोई सच बोलता है, तो सत्ता उसे दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
कमजोर वर्गों की आवाज़ को दबाने की कोशिश
नेहा के गीत हमेशा गरीबों, दलितों और किसानों के संघर्षों को आवाज़ देते हैं। जब एक कलाकार इन समुदायों के लिए अपनी आवाज उठाता है, तो उसकी आलोचना केवल उस कलाकार पर नहीं, बल्कि उन समुदायों पर भी हमला है।
नेहा के खिलाफ चलाए जा रहे ट्रेंड्स और उनके व्यक्तिगत हमले इस बात का संकेत देते हैं कि सत्ता उन आवाज़ों को दबाना चाहती है जो समाज के हाशिए पर हैं। यह केवल नेहा के खिलाफ नहीं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ एक साजिश है।
सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग: लोकतंत्र की नफरत
सोशल मीडिया पर #नेहा_राठौर_देशद्रोही_है जैसे हैशटैग के जरिए नेहा पर हमले किए गए। इस तरह के ट्रेंड्स का उद्देश्य न केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना था, बल्कि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और विविधता के खिलाफ एक हमला था।
जब हम किसी कलाकार, पत्रकार, या विचारक को इस तरह से निशाना बनाते हैं, तो हम समाज में असहमति की आवाज को चुप करा रहे होते हैं। यह हमारे लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है।
देशद्रोह का दुरुपयोग: कानूनी संदर्भ
भारत में देशद्रोह (धारा 124A) का कानून कभी-कभी सरकार की आलोचना करने वाले नागरिकों पर दुरुपयोग के रूप में लागू किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) के फैसले में स्पष्ट किया था कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है।
लेकिन फिर भी नेहा जैसे कलाकारों पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं, जो इस कानून का दुरुपयोग करने का एक उदाहरण है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है, जो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करती है।
नेहा का संघर्ष: एक प्रेरणा
नेहा सिंह राठौर के संघर्ष ने यह साबित किया है कि सच बोलने का साहस रखने वाली एक महिला कलाकार किसी भी प्रकार के दबाव से नहीं झुक सकती। उनके खिलाफ आर्थिक संकट, अपमानजनक आरोप और धमकियों के बावजूद, उन्होंने कभी भी अपनी आवाज़ नहीं दबाई। उनका यह साहस और दृढ़ता समाज के लिए एक प्रेरणा है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा
नेहा सिंह राठौर के समर्थन में खड़ा होना केवल एक कलाकार का समर्थन नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सच्चाई की रक्षा करना है। अगर आज हम चुप रहते हैं, तो कल किसी और की आवाज़ दबाई जाएगी।
यह समय है कि हम नेहा सिंह राठौर के समर्थन में खड़े हों और यह सुनिश्चित करें कि हमारे लोकतंत्र की नींव मजबूत रहे। अगर हम अब नहीं बोले, तो हमारी आने वाली पीढ़ियां कभी भी स्वतंत्रता और न्याय का मूल्य नहीं समझ पाएंगी।
#StandWithNehaRathore #SaveDemocracy #FreedomOfSpeech
– Advocate Amaresh Yadav
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