कपिल सिब्बल: विपक्ष का वकील या सत्ता का सौदागर?

लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव


“जब कोई विरोध की भाषा बोलते हुए भी सत्ता के इशारे पर खेलता हो, तो समझ लीजिए कि वो विरोध नहीं, विश्वासघात कर रहा है।”

कपिल सिब्बल — नाम तो आपने सुना ही होगा। संविधान के रक्षक, अदालत के धुरंधर, और विपक्ष का “सबसे बड़ा वकील” कहलाने वाले इस शख्स की भूमिका पिछले 12 वर्षों से गहन संदेह के घेरे में है। अगर हम आँखें खोलकर देखें, तो एक पैटर्न नजर आता है — सिब्बल हर उस मोर्चे पर खड़े होते हैं जहां विपक्ष की सबसे बड़ी ज़रूरत होती है… और वहीं से विपक्ष कमजोर पड़ता है।


विरोध में खड़े, लेकिन असर में सत्ता के साथ

राम मंदिर मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में खड़े होते हैं, लेकिन ऐसी बातें करते हैं जिससे हिन्दू पक्ष को फायदा मिले।
CAA और NRC पर जन भावनाएं भड़कीं, सिब्बल कोर्ट गए — और क्या हासिल हुआ? कुछ नहीं।
अल्पसंख्यक नेताओं के केस — लालू यादव, शिबू सोरेन, आज़म खान — सब में वकालत की, और हर बार भाजपा को नैरेटिव सेट करने का मौका मिला।

कहने को विपक्ष का हितैषी, लेकिन परिणाम सत्ता की गोद में।


क्या यह महज वकालती विफलता है या राजनीतिक भूमिका?

कोर्ट में हार हो सकती है, लेकिन हर बार सिर्फ एक ही पक्ष क्यों हारता है — और हर बार जब सिब्बल लड़ते हैं?
क्या यह महज संयोग है कि सिब्बल जिस केस को छूते हैं, वह भाजपा के पक्ष में मोड़ लेता है?

शायद ये ‘संयोग’ नहीं, एक ‘रणनीति’ है।
कपिल सिब्बल भाजपा का वह “ट्रोजन हॉर्स” हैं, जो विपक्ष की सेना में बैठा दरवाजे खोल रहा है।


नेहा सिंह राठौर की कलम पर ‘कानूनी सलाह’ क्यों?

जब जनता की आवाजें उठती हैं — जैसे नेहा सिंह राठौर की कविता — तो वही लोग “कानूनी समझ”, “बचाव की रणनीति”, और “व्यवस्थित विरोध” जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं।
ये ‘बुद्धिजीवी सलाह’ असल में आग को पानी में बदलने की कोशिश होती है।

और इस काम में सिब्बल माहिर हैं — जनता की ऊर्जा को कानूनी गुत्थियों में उलझा देने में।


अगर यह आदमी विपक्ष में है, तो विपक्ष को दुश्मन की ज़रूरत नहीं

एक ओर सिब्बल अपने मंच बनाते हैं — जैसे ‘इंसाफ का मंच’।
दूसरी ओर कोर्ट में ऐसी दलीलें देते हैं जिससे सत्ता की ताकत वैध हो जाए।
तीसरी ओर विपक्ष के युवा नेताओं को कानूनी चक्रव्यूह में उलझा देते हैं।

यानी हर फ्रंट पर सत्ता को फायदा — और उसे कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। बस कपिल सिब्बल को काम करने देना है।


निष्कर्ष: मुखौटा उतरना चाहिए

कपिल सिब्बल की वकालत सिर्फ कोर्ट में नहीं होती — वह जनता की चेतना को भी प्रभावित करती है।
अगर विपक्ष को सच में खुद को बचाना है, तो सबसे पहले उसे भीतर के एजेंटों को पहचानना होगा।
कपिल सिब्बल जैसे लोग असल में सत्ता के “साइलेंसर” हैं — जो विरोध की आवाज़ को कानूनी लफ्फाजी में गुम कर देते हैं।

अब समय है कि विपक्ष अपने ही बीच बैठे कपटी किरदारों को पहचानकर दूर करे — नहीं तो विपक्ष कभी सत्ता का विकल्प नहीं बन पाएगा।


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