हथियार हमारे और नियंत्रण फ़्रांस का
राफेल की ‘डील’ या डील में ‘डील’? – सोर्स कोड से डर क्यों?

तो अब फ्रांस की सरकार और राफेल बनाने वाली कंपनी ने दो टूक कह दिया है – “सोर्स कोड नहीं मिलेगा!”
क्यों? क्योंकि साहेब ने डील करते समय ये “मामूली चीज़” पूछना ज़रूरी नहीं समझा।
अब सवाल उठता है – क्या हम केवल लड़ाकू विमान खरीदने गए थे या गुलामी का कॉन्ट्रैक्ट साइन करने?
जब अरबों रुपये देकर आप कोई टेक्नोलॉजी खरीदते हैं, तो उसका पूरा कंट्रोल चाहिए या नहीं?
सोर्स कोड न होने का मतलब क्या है?
मतलब – आप उस विमान को न अपग्रेड कर सकते, न अपने बनाए हथियार उससे जोड़ सकते, न दुश्मन के खिलाफ इस्तेमाल करते समय उसमें बदलाव कर सकते। आप केवल वही कर सकते हैं, जो फ्रांस चाहे।
यानि भारत के आसमान में उड़ने वाला विमान है, लेकिन उसकी चाबी किसी और के पास है!
अब सुनिए असली खेल:
विमान की मरम्मत, रख-रखाव, और अपग्रेड के लिए अरबों के कॉन्ट्रैक्ट हर साल बनने हैं। किसको मिलेंगे ये कॉन्ट्रैक्ट? वही तय करेगा जिसने सोर्स कोड छिपा रखा है।
यानि डील एक बार नहीं, हर साल की कमाई का सिस्टम बना है।
और मज़ेदार बात ये कि सरकार समर्थक एंकर, ट्रोल्स और भक्ति आर्मी सोशल मीडिया पर कह रही है –
“साहेब ने किया है, तो सोच समझकर ही किया होगा।”
तो भैया, सोच कर किया था या किसके कहने पर किया था – ये भी कभी बताया जाएगा?
क्या ये राष्ट्रवाद है?
जब आपके ही टैक्स के पैसे से खरीदा गया विमान आपके ही कंट्रोल में न हो – तो क्या आप सुरक्षित हैं?
हकीकत ये है – राष्ट्रवाद का चोला ओढ़े कुछ लोग कॉरपोरेट दलाली का खेल खेल रहे हैं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि भारत की सुरक्षा कितनी खोखली हो रही है, उन्हें फर्क है कि कौन सा कमीशन कहाँ से मिलेगा।
अब बोलने की बारी हमारी है।
हम सवाल पूछेंगे, क्योंकि देश हमारा है – किसी एक साहेब की जागीर नहीं।
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