युद्ध चाहिए भी… और नहीं भी —– समझिए मेरे दो जवाब क्यों दोनों सही हैं
— एडवोकेट अमरेष यादव

भैया, जब बार-बार कोई आपके दरवाज़े पर पत्थर फेंक के भागे,
आपके बेटे को चाकू मार दे,
आपकी माँ को गाली दे —
तो आप कब तक चुप बैठेंगे?
आज जो लोग पूछते हैं — “क्या पाकिस्तान से युद्ध होना चाहिए?”
मैं सीधा कहता हूँ — हाँ, बिल्कुल होना चाहिए। अब बहुत हो चुका।
लेकिन उसी साँस में जब कोई कहे — “क्या युद्ध नहीं होना चाहिए?”
तो मैं उतनी ही मजबूती से कहता हूँ — नहीं, बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
अब आप सोचिए, एक ही आदमी दो अलग जवाब कैसे दे रहा है?
साफ़ कहूँ तो ये विरोध नहीं है, ये तो आज के भारत की असली सोच है — तेज़ भी और तटस्थ भी।
जब पाकिस्तान को उसकी भाषा में जवाब देना ज़रूरी हो जाता है
पुलवामा के बाद क्या हुआ? कुछ बम गिरे, बयान आए, फिर सन्नाटा।
पर जवान तो अब भी मर रहे हैं।
कभी राजौरी, कभी पुंछ, कभी बारामुला —
हर महीने एक ताज़ा शव आता है तिरंगे में लिपटा हुआ।
अब बताइए — पाकिस्तान जो खुद अपने देश में कानून नहीं चला पा रहा,
वो हमारे देश के खिलाफ जहर उगलता रहे और हम खामोश रहें?
हमारे जवान मारें जाएं और हम UNO में चिट्ठी लिखें?
कभी-कभी जवाब लफ़्ज़ों से नहीं, लौहे से दिया जाता है।
और पाकिस्तान को वही समझ में आता है —
गोली की जुबान।
तो फिर युद्ध से मुँह मोड़ना क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि लड़ाई एक दिन की नहीं होती।
जंग छिड़ती है सरहद पर, पर उसका ज़हर दिल्ली से लेकर गांव तक फैलता है।
हर युद्ध में एक बॉर्डर पर बम गिरता है, पर असली मार तो किसान, मज़दूर, नौजवान पर पड़ती है।
- एक सैनिक शहीद होता है,
- पर उसका बच्चा स्कूल छोड़ देता है,
- माँ की आँखें सूख जाती हैं,
- और गाँव में चूल्हा ठंडा पड़ जाता है।
और ज़रा सोचिए — पाकिस्तान के पास परमाणु बम है।
अगर उधर से एक पागल हुक्म दे दे, तो क्या होगा?
एक सुलझा हुआ देश वही है जो जंग की तैयारी भी रखे, और उसे टालने की बुद्धि भी।
दो जवाब — लेकिन दोनों सच्चे, दोनों भारतीय
मैं कहता हूँ — युद्ध चाहिए
क्योंकि पाकिस्तान अब सिर्फ पड़ोसी नहीं, खतरा बन चुका है।
और मैं कहता हूँ — युद्ध नहीं चाहिए
क्योंकि भारत अब ताक़तवर है, उसे कोई जल्दबाज़ी शोभा नहीं देती।
ये दोनों जवाब विरोध नहीं हैं। ये तो उसी भारत के दो हाथ हैं — एक तलवार थामे, दूसरा कलश।
एक कहे, “बस बहुत हुआ।”
दूसरा कहे, “लेकिन सोच के करना।”
निष्कर्ष: भारत को अर्जुन बनना है — लेकिन युद्ध तभी जब कोई और रास्ता न बचे
भारत अब 1947 वाला मुल्क नहीं रहा।
अब हम चंद्रमा पर झंडा गाड़ चुके हैं,
दुनिया की बड़ी-बड़ी महाशक्तियाँ हमारे साथ बैठती हैं।
अब युद्ध का मतलब सिर्फ जीत नहीं होता —
उसका मतलब है सोच-समझ कर उठाया गया कदम, जिसकी कीमत सिर्फ दुश्मन चुकाए।
तो हाँ,
अगर आप मुझसे पूछें — युद्ध हो या न हो?
तो मैं कहूँगा —
युद्ध हो, अगर यह हमारी अस्मिता की रक्षा करता है।
और न हो, अगर हम अपनी रणनीति से दुश्मन को वैसे ही घुटनों पर ला सकते हैं।
भारत को अब तलवार की धार भी चाहिए, और बुद्ध की विचारधारा भी।
तभी तो ये देश असली भारत बना रहेगा।
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