POK पर नियंत्रण या बलूचिस्तान की आज़ादी का समर्थन: भारत की रणनीतिक प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?

लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव
दिनांक: 10 मई 2025
प्रस्तावना
भारत की सुरक्षा, अखंडता और कूटनीतिक स्थिति से जुड़े दो प्रश्न लंबे समय से नीति-निर्माताओं और जनता के बीच चर्चा का विषय हैं –
- क्या भारत को पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (POK) को पुनः प्राप्त करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए?
- या फिर भारत को बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की माँग कर रहे लोगों का समर्थन करना चाहिए?
यह ब्लॉग पोस्ट तथ्यों, तर्कों और कूटनीतिक दृष्टिकोणों के आधार पर दोनों विकल्पों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
1. POK: भारत का वैध हिस्सा
- भारतीय संसद ने 1994 में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया कि POK भारत का अभिन्न हिस्सा है।
- 2019 के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में भी भारत ने कानूनी रूप से POK को अपने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में शामिल किया है।
- यह न सिर्फ संवैधानिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
2. रणनीतिक लाभ: POK पर नियंत्रण
- पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद का गढ़ – आतंकी शिविर POK में संचालित होते हैं।
- गिलगित-बाल्टिस्तान के रास्ते CPEC गुजरता है, जो चीन-पाकिस्तान की सांठगांठ का मुख्य आधार है।
- स्थानीय लोग बिजली, पानी और अधिकारों की लड़ाई में सड़कों पर हैं – भारत के लिए नैतिक और कूटनीतिक अवसर मौजूद हैं।
3. बलूचिस्तान: पाकिस्तान का उपेक्षित राज्य
- बलूच लोगों का पाकिस्तान के साथ जबरन विलय हुआ था।
- 1948 से आज तक पाँच बार बलूच विद्रोह हो चुके हैं।
- मानवाधिकार हनन, गायबियों और सेना की क्रूरता के विरुद्ध आवाज उठाने वालों को भारत नैतिक समर्थन दे सकता है।
4. रणनीतिक दृष्टिकोण: बलूच आंदोलन का समर्थन क्यों?
- पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर तनाव बढ़ाकर उसका सैन्य संतुलन बिगाड़ा जा सकता है।
- भारत को अफगानिस्तान और ईरान तक पहुँच में मदद मिल सकती है।
- चीन के ग्वादर पोर्ट तक पहुँच को खतरे में डाला जा सकता है।
5. कौन-सी नीति ज्यादा उपयुक्त? – तुलनात्मक विश्लेषण
निष्कर्ष
भारत को POK पर पुनः अधिकार की दिशा में लगातार कूटनीतिक और रणनीतिक दबाव बनाना चाहिए – यह न केवल कानूनी रूप से उचित है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।
साथ ही, बलूचिस्तान आंदोलन को नैतिक और मानवाधिकार आधारित समर्थन दिया जाना चाहिए – बिना प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप के। यह दोहरी नीति भारत को वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करेगी और पाकिस्तान को उसके ही खेल में मात देगी।
समाप्ति
“भारत अब केवल एक रक्षात्मक राष्ट्र नहीं है – यह समय है पहल करने का, रणनीति गढ़ने का, और न्याय के पक्ष में खड़े होने का।”
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