देश को डीलर की नहीं, लीडर की ज़रूरत है

– एडवोकेट अमरेष यादव
“नेतृत्व” शब्द अपने आप में जिम्मेदारी, दृष्टिकोण और बलिदान का प्रतीक होता है। लेकिन जब सत्ता में बैठा व्यक्ति ‘डीलर’ बन जाए – सौदों, इवेंट्स और प्रचार का एजेंट – तब राष्ट्र की दिशा भटक जाती है।
आज भारत की राजनीति में एक बड़ा सवाल सिर उठाए खड़ा है – क्या हम वाकई एक लीडर के पीछे चल रहे हैं, या किसी मार्केटिंग मैनेजर के जाल में उलझ चुके हैं?
डीलर बनाम लीडर – फर्क क्या है?
- डीलर ‘दिखावे’ पर चलता है, लीडर ‘दिशा’ पर।
- डीलर कैमरे का चेहरा चमकाता है, लीडर राष्ट्र का चेहरा।
- डीलर सौदे करता है – दोस्ती, युद्ध, या विदेश नीति सब उसके लिए पब्लिक रिलेशन का मामला है। लीडर सोचता है कि अगले 10-20 साल में देश कहां खड़ा होगा।
आज जब अमेरिका खुलेआम सीजफायर में अपनी भूमिका का श्रेय लेता है, तब सवाल उठता है – क्या भारत की विदेश नीति इतनी कमजोर हो गई है कि वह 1971 के शिमला समझौते की मूल भावना तक नहीं बचा पाया?
एकतरफा युद्ध, एकतरफा सीजफायर – ये कैसी रणनीति?
जब आप युद्ध का बिगुल बजाते हैं तो यह सिर्फ सैनिकों की गोली नहीं होती, वह राष्ट्र की प्रतिष्ठा, मनोबल और रणनीतिक तैयारी होती है।
- एक हफ्ते के भीतर ही पीछे हटना और सीजफायर मांगना यह संकेत देता है कि हमारी पूरी रणनीति मीडिया शो से ज्यादा कुछ नहीं थी।
- पाकिस्तान भले ही आर्थिक रूप से कमजोर हो, लेकिन वह आज इस युद्ध को अपनी जीत बता रहा है। और हम? हम कैमरा बंद कर चुके हैं।
देश को चाहिए स्थायी नेतृत्व, न कि मौसमी प्रचारक
मोदी सरकार के पिछले एक दशक ने दिखा दिया कि योजनाएं इवेंट्स में बदल दी गईं, विदेश नीति झूले में झूल गई, और सैन्य निर्णय TRP की भेंट चढ़ गए।
अब समय आ गया है कि जनता यह सवाल पूछे –
- हमारे मित्र देश कहां हैं?
- हमारे रणनीतिक साझेदार क्यों गायब हैं?
- क्या हर बार सिर्फ ‘बयान’ ही हमारा हथियार है?
आगे का रास्ता – एक लीडर की ज़रूरत
- हमें चाहिए एक ऐसा नेता जो वैश्विक राजनीति को समझे, न कि सिर्फ उसे मंच पर दोहराए।
- जो युद्ध को अंतिम विकल्प माने, न कि जनता को झांसा देने का पहला माध्यम।
- जो देश के हित में निर्णय ले, न कि अपने प्रचार के लिए।
निष्कर्ष:
भारत को 21वीं सदी में सिर्फ तेज़ बोलने वाला नहीं, ठोस निर्णय लेने वाला नेता चाहिए।
देश को अब डीलर नहीं, लीडर चाहिए।
वो लीडर जो सच्चाई से डरे नहीं, सवालों से भागे नहीं और राष्ट्र के लिए निर्णय लेने का साहस रखे – चाहे वो लोकप्रिय हों या नहीं।
– एडवोकेट अमरेष यादव
स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार और उच्च न्यायालय अधिवक्ता
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