“सीमा और संसद: किसान के बेटे ही संभाल सकते हैं, धनिया-पत्ती बेचने वाले नहीं”
✍️ By Advocate Amaresh Yadav


देश को डीलर नहीं, लीडर चाहिए – और वो पैदा होते हैं खेत की मिट्टी से!

“किसान का बेटा जब सीमा पर बंदूक उठाता है तो देश की हिफाजत करता है, और जब संसद में पहुंचता है तो जनहित की बात करता है। लेकिन जब राजनीति चाय बेचने वालों की मंडी बन जाए, तो ना सीमा बचती है, ना संसद की इज्जत!”

1. संसद और सरहद, मजाक नहीं हैं

संसद हो या सरहद, दोनों की गरिमा समझना जरूरी है। ये कोई टीवी डिबेट नहीं जहां ज़ोर से बोलने वाला जीत जाए। ये ज़िम्मेदारी है – उस मिट्टी से उपजी समझ की, जो खेत-खलिहान में पैदा होती है, ना कि एयर कंडीशंड स्टूडियो में!

सीमा पर तैनात जवान और संसद में जनहित की बात करता नेता – दोनों में एक चीज़ कॉमन होनी चाहिए – जमीन से जुड़ाव।

2. देशप्रेम जुमलों से नहीं, अनुभव से आता है

हर बार जब देश संकट में होता है, सरकार पोस्टर छापती है, स्लोगन गढ़ती है और दुश्मन देश को “कड़ा जवाब” देने की बात करती है – और दो दिन में पीछे हट जाती है।
ये रणनीति नहीं, ड्रामा है।

देश का नेतृत्व नारेबाज़ी से नहीं, नीति और नीयत से होता है। और ये आती है उन बेटों से, जिन्होंने खेत में हल भी चलाया है और बंदूक भी उठाई है।

3. जमीन से जुड़ा नेता ही समझेगा देश की तकलीफ

  • एक किसान का बेटा जानता है सूखे में कैसे जिया जाता है।
  • वो जानता है कि जब सरकारी कर्ज से फसल बर्बाद हो जाए, तब आत्मा कैसे कांपती है।
  • वही बेटा अगर सत्ता में आता है, तो बजट में किसानों की बात करता है, सैनिकों की सुविधाएं बढ़ाता है।

जबकि…
धनिया-मसाला बेचने वाला आदमी सत्ता में आए तो सिर्फ ‘मार्केटिंग’ करता है। एक दिन हमले की घोषणा करता है, दूसरे दिन फोटो खिंचवाकर पीछे हट जाता है।

4. युद्ध और शासन — ये फोटोशूट नहीं हैं

अगर लड़ाई सिर्फ एक हफ्ते के दिखावे के लिए लड़ी जाती है, तो उसका नुकसान देश की छवि को होता है।

  • दुश्मन हँसता है।
  • मित्र देश दूरी बना लेते हैं।
  • और जनता सवाल करने लगती है – क्या ये युद्ध था या शो?

5. देश को सेल्समैन नहीं, सेनापति चाहिए

नेता वो हो जो बोले कम, करे ज़्यादा। जो पॉलिसी समझे, प्रचार नहीं।

  • जो संसद में किसानों के लिए बोले।
  • सेना के बजट को बढ़ाए।
  • विदेश नीति में अमेरिका की नहीं, भारत की बात करे।
  • और जब सीमा पर कदम बढ़ाए, तो पीठ नहीं दिखाए।

निष्कर्ष:

देश की राजनीति को फिर से गांव के चौपाल से जोड़ने की जरूरत है।

  • संसद में वही लोग होने चाहिए जिन्हें भूख, बारिश, युद्ध और फसल का फर्क समझ में आता हो।
  • और सरहद की बात तब होनी चाहिए जब तैयारी पूरी हो, सिर्फ अख़बार की हेडलाइन बनाने के लिए नहीं।

अब वक्त है – देश को डीलर से आज़ाद करने का।
अब ज़रूरत है – किसान के बेटे को सत्ता में लाने की।

क्योंकि देश की संसद और सीमा… दोनों के लिए जिगर चाहिए, जुगाड़ नहीं।


✍️ अमरेष यादव
जनपक्षधर वकील व राजनीतिक लेखक


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