जिसमें वह कामयाब होता दिख रहा है, ट्रंप की कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने वाले बयान इसी कारण से है!

कश्मीर हमला: पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय चाल और भारत की रणनीतिक चुनौती
लेखक: अमरेष यादव, अधिवक्ता व अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में देश के 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए। यह हमला सिर्फ एक आतंकी घटना नहीं, बल्कि एक सोची-समझी अंतरराष्ट्रीय साज़िश थी, जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की भूमिका स्पष्ट दिखती है।
पाकिस्तान की असली मंशा: कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण
पाकिस्तान वर्षों से प्रयास करता आ रहा है कि कश्मीर मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बने।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद से यह मुद्दा वैश्विक विमर्श से लगभग गायब हो गया था, जिससे पाकिस्तान बौखलाया हुआ था।
उसे पता था कि जब तक घाटी में कोई बड़ी, ध्यान खींचने वाली घटना नहीं होती, दुनिया का ध्यान इस ओर नहीं जाएगा। इसी उद्देश्य से यह हमला कराया गया।
पर्यटकों को निशाना क्यों बनाया गया?
हमले में मारे गए लोग तीर्थयात्री नहीं, बल्कि सामान्य पर्यटक थे — जिन्हें धार्मिक या राजनीतिक आधार पर नहीं, बल्कि भारत की शांति और पर्यटन छवि को चोट पहुँचाने के लिए निशाना बनाया गया।
यह हमला घाटी की सामान्य स्थिति को अस्थिर करने और भारत में आंतरिक तनाव बढ़ाने के लिए किया गया।
साथ ही, इसका उद्देश्य था अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह नैरेटिव बनाना कि “कश्मीर असुरक्षित है” और वहाँ “मानवाधिकार संकट” गहराता जा रहा है।
भारत की जवाबी कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय दबाव
भारत ने त्वरित और सख्त सैन्य प्रतिक्रिया दी, जिससे पाकिस्तान दबाव में आ गया। लेकिन इसी के बाद शुरू हुई अंतरराष्ट्रीय स्तर की कूटनीतिक साज़िश।
चीन, तुर्कीए, सऊदी अरब और अमेरिका जैसे देश सामने आए और “परमाणु संघर्ष की आशंका” दिखाकर भारत पर संयम बरतने का दबाव बनाने लगे।
सबसे बड़ा झटका तब लगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद एकतरफा युद्धविराम की घोषणा कर दी — जो कि भारत की संप्रभुता और शिमला समझौते दोनों का सीधा उल्लंघन है।
यह वही ट्रंप हैं जिन्होंने पहले भी कश्मीर पर मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने तब खारिज कर दिया था। लेकिन अब परिस्थितियां कुछ अलग हैं — भारत अनजाने में ही इस ‘मध्यस्थता’ के जाल में खिंचता नजर आ रहा है।
भारत की चूकें
- प्रमाणिक नैरेटिव का अभाव – भारत ने इस हमले को ISI प्रायोजित आतंकवाद के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पेश नहीं किया।
- राजनयिक प्रतिक्रिया की धीमी गति – अमेरिकी राष्ट्रपति की युद्धविराम घोषणा और मध्यस्थता के प्रयास पर भारत की प्रतिक्रिया उतनी तीव्र और सार्वजनिक नहीं रही, जितनी होनी चाहिए थी।
- मीडिया रणनीति की कमजोरी – पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मीडिया को अपने पक्ष में मोड़ने में सफल रहा, जबकि भारत इस युद्ध का ‘प्रचार-पक्ष’ हारता दिखा।
अब भारत को क्या करना चाहिए?
- आक्रामक कूटनीति: भारत को अमेरिका और अन्य देशों को स्पष्ट संदेश देना होगा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, और किसी भी प्रकार की मध्यस्थता अस्वीकार्य है।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अभियान: संयुक्त राष्ट्र, BRICS, SCO, G20 जैसे मंचों पर पाकिस्तान की आतंकी साज़िश को बेनकाब किया जाए।
- प्रभावशाली नैरेटिव निर्माण: भारत को अपने पक्ष की कहानी दुनिया तक तेज़ी और प्रभाव से पहुंचानी होगी — शब्दों और छवियों दोनों के माध्यम से।
निष्कर्ष:
यह हमला पाकिस्तान की सिर्फ सैन्य नहीं, बल्कि कूटनीतिक और मीडिया रणनीति का हिस्सा था।
भारत को इस लड़ाई में सिर्फ बॉर्डर पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों और ग्लोबल नैरेटिव वॉर में भी पूरी ताकत के साथ उतरना होगा।
अन्यथा, ऐसे हमले सिर्फ जान नहीं लेंगे, देश की विदेश नीति को भी कमजोर कर सकते हैं।
लेखक: अमरेष यादव
अधिवक्ता व अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक
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