अब समय आ गया है: देश को एक निर्णायक नेतृत्व चाहिए — जैसा हिंदू महासभा देती

हो गई है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए…

लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव

भारत की आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी जब देश युद्ध-विरामों, तुष्टीकरण और मीडिया-मैनेजमेंट से आगे नहीं बढ़ पाया है — तब ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या आज़ाद भारत ने कभी एक निर्णायक राष्ट्रवादी नेतृत्व को वास्तव में मौका दिया?

आज जब सीमाएं सुलग रही हैं, संसद मौन है, और विदेश नीति व्हाइट हाउस की प्रेस कॉन्फ्रेंस से तय हो रही है — तब हम सोचने को विवश हैं कि यदि भारत का नेतृत्व आज हिंदू महासभा जैसी वैचारिक स्पष्टता और राष्ट्र-प्रथम दृष्टिकोण वाली पार्टी के हाथ में होता, तो हालात कुछ और होते।


1. वैचारिक स्पष्टता बनाम चुनावी भ्रम

वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व ‘संघी राष्ट्रवाद’ और ‘चाय बेचू ब्रांडिंग’ के बीच झूलता रहा है। जहां एक ओर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात होती है, वहीं दूसरी ओर विदेश नीति में प्रो-अमेरिकन पिछलग्गूपन साफ़ दिखता है।

हिंदू महासभा का राष्ट्रवाद न तो दिखावटी है, न ही अवसरवादी। वह सावरकर की उस परंपरा से आती है जहां भारत को एक अखंड सांस्कृतिक इकाई माना गया — जिसे हथियारों से नहीं, नीति और दृढ़ता से सुरक्षित रखा जा सकता है।


2. युद्ध और शांति का संतुलन: “फोटो वार” नहीं, फाइनल वार

वर्तमान सरकार ने युद्ध को भी एक इवेंट बना दिया है — सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, वन डे वॉर — सब मीडिया हेडलाइन तक सीमित।

यदि हिंदू महासभा का प्रधानमंत्री होता, तो युद्ध पहले छह महीने की कूटनीतिक और सैन्य तैयारी के बाद ही छेड़ा जाता, और फिर दुश्मन को POK, गिलगित और बलूचिस्तान तक पीछे धकेल कर ही दम लिया जाता।


3. गुटनिरपेक्षता का भूत उतारना ज़रूरी है

आज जब भारत किसी गुट का हिस्सा नहीं है, तब कोई भी देश हमारे पक्ष में नहीं खड़ा होता। चाहे UN हो या OIC — सब पाकिस्तान को सुनते हैं, भारत को नहीं।

हिंदू महासभा की विदेश नीति स्पष्ट होती — भारत जिस गुट में हो, वहां नेतृत्व करे, पिछलग्गू न बने।


4. वोट बैंक से ऊपर राष्ट्रहित

वर्तमान व्यवस्था में वोट-बैंक और तुष्टीकरण सर्वोपरि हैं। CAA-NRC से लेकर कश्मीर तक हर फैसला अधूरा, झिझक वाला रहा।

हिंदू महासभा यदि सत्ता में होती, तो संविधान की सीमा में रहकर इन मुद्दों पर अंतिम निर्णय लेती — स्पष्ट और निर्णायक। कोई अधूरी घोषणाएं नहीं, केवल क्रियान्वयन।


5. क्यों हिंदू महासभा का प्रधानमंत्री समय की मांग है?

  • क्योंकि वह राजनीति में “डीलर” नहीं, “लीडर” देना जानती है
  • क्योंकि वह भारत को संस्कृति, सुरक्षा और स्वाभिमान की त्रयी में देखती है
  • क्योंकि वह कूटनीति को राष्ट्रनीति से अलग नहीं समझती
  • क्योंकि उसके लिए संसद और सीमा, दोनों पवित्र हैं — और दोनों की रक्षा के लिए निर्णय लेने से नहीं डरती

निष्कर्ष:
अब समय आ गया है कि भारत एक वैचारिक, निर्णायक और स्पष्ट नेतृत्व को अवसर दे — जो न नर्म हो, न भ्रम में हो।
जो न अमेरिका की तरफ देखे, न कैमरों की तरफ।
जो केवल भारत की तरफ देखे — और भारत के लिए निर्णय ले।

क्योंकि इतिहास हमेशा उन्हीं को याद रखता है, जो निर्णायक होते हैं — न कि वे जो हर सीज़फायर पर मुस्कुराते हुए चुप हो जाते हैं।


Amaresh Yadav, Supreme court of India

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