राफेल पर सवाल या साजिश? – जब भारत की सैन्य शक्ति को निशाना बनाता है ‘डिफेंस मार्केट’ का गैंगवार
लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव

भारतीय वायुसेना के राफेल विमान हाल ही में एक बार फिर चर्चा में हैं। वजह? पाकिस्तान में की गई सर्जिकल-स्तर की गुप्त कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’, जिसके बाद सोशल मीडिया से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक पर सवाल उठने लगे:
क्या राफेल पाकिस्तान के J-10C से हार गया?
क्या भारतीय वायुसेना ने अपने सबसे आधुनिक हथियार की प्रतिष्ठा गवां दी?
पर असली सवाल यह है — क्या यह राफेल पर हमला था या भारत की सैन्य विश्वसनीयता पर एक सुनियोजित साजिश?
जब विमान उड़ते हैं, तो एजेंडे भी उड़ते हैं
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत भारत ने बहावलपुर और मुज़फ्फराबाद में गहराई तक हमला कर आतंकवादी ढांचों को ध्वस्त किया। राफेल, SCALP क्रूज़ मिसाइलों और हैमर बमों के साथ, इस मिशन का सबसे धारदार हथियार था।
लेकिन इसके तुरंत बाद — जैसे किसी स्क्रिप्ट के तहत — पाकिस्तानी मीडिया और उसके समर्थक ट्विटर ट्रोल्स ने दावा किया कि “भारत के तीन राफेल विमान मार गिराए गए”, और यह कि “चीनी PL-15 मिसाइल ने फ्रेंच तकनीक को धूल चटा दी”।
अब तक इस कथित ‘शूटडाउन’ का न कोई सबूत है, न कोई उपग्रह छवि, न ही किसी मलबे की स्वतंत्र पुष्टि।
फिर सवाल उठता है: ये खबरें फैलाई क्यों जा रही हैं? और किसके हित में?
तथ्यों की तह में छिपी साजिश की परतें
- वायुयुद्ध का रिकार्ड:
अब तक दुनिया भर में राफेल का कोई भी युद्ध में खोया हुआ रिकॉर्ड नहीं है — न लीबिया, न माली, न ही अफगानिस्तान में। यह विमान न केवल आधुनिकतम तकनीक से लैस है, बल्कि यह real battle-tested है। - तस्वीरों की पड़ताल:
जो तस्वीरें वायरल की गईं, वे या तो पुराने मलबों की हैं या डिजिटल रूप से एडिट की गईं। कई अंतरराष्ट्रीय OSINT खातों ने इन्हें खारिज किया है। - सरकारी चुप्पी:
भारत सरकार और वायुसेना ने इन दावों पर कोई टिप्पणी नहीं की है — यह रणनीतिक मौन है, न कि स्वीकारोक्ति।
‘फर्स्ट किल’ की होड़: वैश्विक रक्षा बाजार का गंदा खेल
राफेल के खिलाफ जो कुछ भी हुआ, वह केवल पाकिस्तान के बयानबाज़ी का हिस्सा नहीं था — यह वैश्विक रक्षा बाजार का ‘कॉमर्शियल प्रोपेगेंडा ऑपरेशन’ था।
- चीन अपने J-10C विमान को एशिया और अफ्रीका में बेचने के प्रयास में है।
- रूस Su-35 और Checkmate को प्रमोट कर रहा है।
- अमेरिका F-16 और F-35 के लिए लॉबिंग करता है।
ऐसे में राफेल का पहला नुकसान दिखाना, उसे ‘कमजोर’ बताना — इन सबके लिए लाभकारी हो सकता है। खासकर तब, जब भारत ने उसे 60,000 करोड़ की डील में शामिल किया हो और इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देश भी खरीद में रुचि दिखा रहे हों।
डिजिटल युद्ध = मनोवैज्ञानिक युद्ध
अब युद्ध केवल हथियारों से नहीं लड़े जाते, बल्कि छवि और सूचना से भी लड़े जाते हैं। सोशल मीडिया, फेक अकाउंट्स, और AI-जेनरेटेड इमेज से एक विमानों को ‘फ्लॉप’ और दुश्मनों को ‘हीरो’ बना देना आज बेहद आसान है।
यह भारत की रक्षा प्रतिष्ठा को हिलाने का प्रयास है — बिना एक भी गोली चलाए।
क्या भारत तैयार है ‘रिप्यूटेशनल वारफेयर’ के लिए?
भारत को यह समझना होगा कि अगला युद्ध केवल LOC या LAC पर नहीं, बल्कि इंटरनेट के टॉप ट्रेंड्स और मीडिया हेडलाइनों में भी लड़ा जा रहा है।
- जब राफेल का मज़ाक उड़ाया जाता है, तो वह सिर्फ एक विमान नहीं — भारत की सामरिक प्रतिष्ठा को कमजोर किया जा रहा है।
- जब ‘सूत्रों’ के हवाले से फेक न्यूज़ चलाई जाती है, तो वह केवल भारत की सेना पर नहीं, देश की आत्मविश्वास क्षमता पर हमला होता है।
अंत में: यह युद्ध अब दो मोर्चों पर है
- वास्तविक युद्धक्षेत्र, जहां राफेल जैसे विमान दुश्मन को तबाह कर रहे हैं।
- छवि युद्धक्षेत्र, जहां भारत की सैन्य सफलता को झूठ और भ्रम से ढका जा रहा है।
इसलिए समय है कि भारत ‘इंफॉर्मेशन डिफेंस कमांड’ जैसी किसी डिजिटल रणनीति को अपनाए, और यह स्पष्ट कर दे —
हम न केवल युद्ध जीत सकते हैं, हम उस युद्ध की कहानी भी लिख सकते हैं।
✍️ Amaresh Yadav, Advocate, Supreme court of of India
Leave a comment