माननीय CJI बीआर गवई को करारा जवाब — न्यायपालिका की जवाबदेही पर सवाल उठाना अपराध नहीं, लोकतंत्र की आत्मा है

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,

आपका सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के फैसले पर ‘खुले तौर पर निंदा’ करना न केवल एक अनुचित प्रतिक्रिया है, बल्कि न्यायपालिका के भीतर लोकतांत्रिक चेतना और जवाबदेही की परंपरा पर सीधा प्रहार है। क्या आज की न्यायपालिका अपने आप को आलोचना से ऊपर समझने लगी है? क्या सवाल उठाना अब अपराध बन गया है?

SCBA का जस्टिस बेला त्रिवेदी को विदाई न देना कोई व्यक्तिगत अपमान नहीं था, बल्कि न्यायपालिका में व्याप्त पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पर गंभीर चिंता और चेतावनी थी। यह कदम न्याय के प्रति एक सजग और जागरूक बार एसोसिएशन की जिम्मेदारी का परिचायक था।

आपकी ‘निंदा’ का स्वर ऐसा प्रतीत होता है जैसे न्यायपालिका स्वयं आलोचना से डरती हो और अपने फैसलों पर खुली बहस को बर्दाश्त नहीं कर पाती। क्या यही वह न्यायपालिका है जो लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में स्थापित हुई थी?

सुप्रीम कोर्ट की गरिमा तभी बनी रहेगी जब वह जवाबदेह होगी, पारदर्शी होगी, और अपने हर फैसले के लिए तैयार होगी। आलोचना को दबाना न्यायपालिका की आत्महत्या होगी।

आपकी इस प्रतिक्रिया से यह संदेश जाता है कि न्यायपालिका आलोचना को नहीं, बल्कि अनदेखा करने और दबाने की नीति अपनाएगी। यह न केवल न्यायपालिका की छवि के लिए हानिकारक है, बल्कि पूरे लोकतंत्र के लिए भी घातक है।

SCBA ने न्यायपालिका की गरिमा बचाने के लिए साहस दिखाया है। जो भी इंस्टीट्यूशन अपने सुधार को रोकता है, वह खुद पतन के रास्ते पर होता है।

आपसे अनुरोध है कि न्यायपालिका की गरिमा और लोकतंत्र के लिए जरूरी जवाबदेही को समझें और इस बात को स्वीकार करें कि न्यायपालिका को सवालों से डरना नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें गले लगाना चाहिए।

— Advocate अमरेष यादव


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