तालाब में तैरती लाशें और डूबती उम्मीदें: जलवाड़ा की 80 भैंसों की मौत एक चेतावनी है

तालाब में लाशें

—Advocate अमरेष यादव

राजस्थान के बारां ज़िले के जलवाड़ा गांव से आई एक दर्दनाक खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। एक ही तालाब में डूबकर 80 भैंसों की सामूहिक मौत कोई साधारण घटना नहीं, यह हमारे ग्रामीण तंत्र, प्रशासनिक लापरवाही और पशुपालन नीतियों की एक शर्मनाक विफलता है।

भैंसें नहीं, परिवार डूबे हैं

आइए ज़रा सोचिए — एक भैंस की कीमत ₹60,000 से ₹1,00,000 तक होती है। यानी कुल मिलाकर 60 लाख से 80 लाख रुपये का सीधा नुकसान, वो भी ऐसे लोगों को, जिनके पास न तो कोई बीमा है, न नियमित आय, और न ही किसी ‘बेलआउट पैकेज’ की उम्मीद।
ये भैंसें किसी परिवार की एकमात्र पूंजी थीं — बच्चों की पढ़ाई, बेटी की शादी, बीमारी का इलाज, और रोज़ की दो रोटी — सब कुछ इन्हीं पर निर्भर था।

मौत का कारण क्या था? और कौन जिम्मेदार है?

स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, मौत का कारण अभी स्पष्ट नहीं है। कुछ लोग करंट लगने की आशंका जता रहे हैं, तो कुछ जल प्रदूषण या विषैली गैस के रिसाव की संभावना पर बात कर रहे हैं। लेकिन असली सवाल ये नहीं है कि कैसे मरे — बल्कि ये है कि मरने से पहले किसी ने इन्हें बचाने की कोशिश क्यों नहीं की?

क्या प्रशासन ने कभी इन तालाबों की जांच करवाई?
क्या पशुपालन विभाग की कोई निगरानी टीम गांव में सक्रिय थी?
क्या कोई एडवाइजरी जारी की गई थी कि तालाब में पानी असुरक्षित है?

यह कोई पहली घटना नहीं

ऐसी घटनाएं पहले भी हुई हैं:

  • पंजाब में फुट एंड माउथ डिज़ीज़ से 500 से ज़्यादा भैंसों की मौत हो चुकी है।
  • हरियाणा के हिसार में कड़ाके की ठंड से 29 पशुओं की जान गई।
  • उत्तर प्रदेश में अक्सर बारिश के बाद जलभराव के कारण पशु मारे जाते हैं।

फिर भी पशुपालन विभाग की तैयारियाँ हर बार सिर्फ़ ‘कागज़ों’ में रहती हैं।

अब बात सिर्फ मुआवज़े की नहीं, जवाबदेही की है

मुआवज़ा देना प्रशासन का पहला कर्तव्य है — लेकिन यह काफ़ी नहीं है। सवाल उठता है कि:

  • क्या प्रशासन पर जिम्मेदारी तय की जाएगी?
  • क्या तालाबों में बिजली या जहरीली गैस की निगरानी की व्यवस्था की जाएगी?
  • क्या पशुपालकों के लिए बीमा और टीकाकरण अनिवार्य और मुफ़्त किया जाएगा?

प्रभावित परिवारों को प्रति पशु न्यूनतम ₹1 लाख का मुआवज़ा मिलना चाहिए — और वह भी तुरंत, न कि सालों की कागजी कार्रवाई के बाद।

एक लोकतांत्रिक देश की पहचान उसके सबसे कमजोर नागरिक की सुरक्षा में है

जब हम कहते हैं कि भारत गांवों का देश है, तो यह केवल नारा नहीं, जिम्मेदारी होनी चाहिए। जलवाड़ा की यह घटना हमें बताती है कि गरीब की पूंजी मरती है, तो सिस्टम केवल तमाशा देखता है। यह तमाशा बंद होना चाहिए।

अंत में: यह सिर्फ भैंसों की नहीं, इंसानियत की मौत है

अगर आज इस घटना की निष्पक्ष जांच नहीं हुई, अगर प्रभावितों को मुआवज़ा नहीं मिला, और अगर प्रशासन अपनी गलती नहीं मानेगा — तो कल यह त्रासदी किसी और गांव की बारी होगी। इसलिए ज़रूरत है कि हम मौन नहीं, मुखर हों। सवाल पूछें, जवाब मांगें, और ज़िम्मेदारों को कटघरे में खड़ा करें।

—Advocate अमरेष यादव
(सामाजिक न्याय व पशुपालन अधिकारों के पैरोकार)


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