भारत का संविधान न दलितों की बपौती है और न ब्राह्मणों की वंशावली!
– अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट


आजादी के 75 वर्षों बाद भी हम भारतीय संविधान को लेकर एक बेहद खतरनाक और भटकाने वाली राजनीति का शिकार हैं। संविधान, जो भारत की आत्मा है, उसे एक “जातिगत आइडेंटिटी कार्ड” में तब्दील किया जा रहा है।

कभी इसे सिर्फ डॉ. अंबेडकर की “दलित थाली” कहा जाता है, तो कभी B.N. राउ को “ब्राह्मण वैभव” का प्रतीक बनाकर संविधान पर ब्राह्मणवाद का झंडा गाड़ने की कोशिश होती है।

मैं यह साफ शब्दों में कहना चाहता हूँ — भारत का संविधान न किसी जाति का निजी जागीर है, न किसी विशेष समुदाय की वंशावली।


1. संविधान क्या वाकई अंबेडकर की अकेली कृति है?

नहीं।
डॉ. अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे — यह निर्विवाद है। उन्होंने संविधान का ड्राफ्ट लिखा, उसे समझाया, प्रस्तुत किया, बचाव किया — यह उनका महान योगदान है।
लेकिन, संविधान सभा 299 लोगों से बनी थी, जिनमें तमाम विचारधाराएं, मत, सुझाव और प्रतिनिधित्व था।

  • नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव रखा
  • पटेल ने रियासतों को मिलाया
  • कन्हैयालाल मुंशी, टीटी कृष्णमाचारी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे अनेक लोगों ने विभिन्न अनुच्छेदों का निर्माण और रक्षा की
  • मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं ने शिक्षा और सांप्रदायिक सद्भाव पर दृष्टिकोण दिया
  • और लाखों लोगों ने संविधान के ड्राफ्ट पर राय दी

तो सवाल ये है – क्या अंबेडकर ने संविधान अकेले लिखा?
नहीं। उन्होंने नेतृत्व किया, लेकिन संविधान “दलित बपौती” नहीं है।


2. अब दूसरी चाल – ब्राह्मणवादी तिलमिलाहट और B.N. राउ

अब कुछ ब्राह्मणवादी समूह यह झूठ फैलाने लगे हैं कि “असल में संविधान B.N. राउ ने बनाया था।”
यह इतिहास की डकैती है।

  • B.N. राउ संविधान सभा के एक सलाहकार थे, उन्होंने comparative studies तैयार कीं
  • उन्होंने अमेरिकन, आयरिश, ब्रिटिश संविधान को पढ़कर नोट्स दिए
  • उन्होंने जस्टिस फ्रैंकफर्टर से सलाह ली

लेकिन वे संविधान सभा के सदस्य नहीं थे, न ही किसी समिति में थे, न ही किसी अनुच्छेद पर चर्चा करने के अधिकारी।
तो उन्हें “वास्तविक संविधान निर्माता” कहने की कोशिश क्या है?

यह सिर्फ जातीय हीन भावना से उपजी ‘बौद्धिक बदला लेने’ की कोशिश है, क्योंकि अंबेडकर का नाम संविधान से जुड़ चुका है।


3. मूर्तिपूजा बनाम बौद्धिक विमर्श – संविधान का असली खतरा

जब आप संविधान को अंबेडकर की मूर्ति से जोड़ देते हैं, तो आप संविधान को विचार से हटाकर भावुक प्रतीक में बदल देते हैं।
और जब आप B.N. राउ को असली निर्माता कहकर उनकी जाति के कारण उन्हें ऊँचा दिखाना चाहते हैं, तो संविधान को ब्राह्मणवादी वंशावली बना देते हैं।

दोनों ही मानसिकताएं संविधान को राजनीतिक खिलौना बना रही हैं।

संविधान न कोई दलित दस्तावेज है, न कोई ब्राह्मण ग्रंथ।
यह भारत का सामाजिक समझौता है — जिसमें हर वर्ग, हर जाति, हर तबके की हिस्सेदारी है।


4. एक अधिवक्ता की चेतावनी – अब बहुत हो चुका

संविधान को अगर मूर्तियों और जातियों में बाँट दिया गया तो उसकी आत्मा मर जाएगी।
हम सिर्फ संविधान की माला पहनाने, माइक पकड़ने और जयकारे लगाने वाले बन जाएंगे – उसके अनुच्छेदों की रक्षा करने वाले नहीं।

इसलिए मैं कहता हूँ:

जो अंबेडकर को एकमात्र संविधान निर्माता मानता है – वह भावुक मूर्तिपूजक है।
जो B.N. राउ को असली निर्माता कहता है – वह ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान की साजिश का हिस्सा है।
जो संविधान को सबका मानता है – वही सच्चा भारतीय है।


निष्कर्ष: संविधान सबका है, और सबका रहेगा

संविधान को जातिगत गौरव या कुंठा का मोहरा बनाना बंद कीजिए।
यह न अंबेडकर की थाली में परोसी खिचड़ी है, न राउ के घर की जलेबी।
यह भारत के संघर्ष, विविधता और विवेक का दस्तावेज है।

अब समय आ गया है कि हम कहें:

संविधान न दलितों की बपौती है और न ब्राह्मणों की वंशावली – ये भारत की चेतना है।


लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट
(संविधान को मूर्तियों से निकाल कर चेतना में ज़िंदा रखने की कोशिश में एक आवाज़)


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