SCBA भी अब “कोलेजियम-कार्टेल” का ही विस्तार है!

✍️ अधिवक्ता अमरेष  यादव

भारत की न्यायपालिका में एक सड़ा हुआ गठजोड़ वर्षों से हमारे लोकतंत्र को दीमक की तरह खा रहा है — कॉलेजियम सिस्टम। पर अब इसी सड़ांध की बदबू Supreme Court Bar Association (SCBA) से भी आने लगी है।

SCBA अब अधिवक्ताओं की संस्था नहीं रही — यह कुछ जजों, लॉ फर्म्स और कुलीन वकीलों का क्लब बन चुकी है।


🧠 कॉलेजियम-कार्टेल और SCBA का गठजोड़: ये एक ही सिक्के के दो चेहरे हैं

कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जनता में हमेशा यह भावना रही है कि यह “अपने-अपने को ऊपर बैठाने” का सिस्टम है। सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है। और अब वही अपारदर्शिता, वही भाई-भतीजावाद और वही कुलीनवाद SCBA के चुनावों में उतर चुका है।

देखिए:

  • पिछले 20 सालों में SCBA के अध्यक्ष वही 3-4 चेहरे क्यों?
  • वही लोग जो बड़े लॉ फर्म्स से जुड़े हैं, या सीधे जजों से नजदीकी रखते हैं।
  • चुनाव के नाम पर दिखावा, जीत का खेल पहले ही तय।
  • “Active Practice” जैसी मनमानी शर्तें बनाकर आम वकील को चुनाव से बाहर कर देना।

क्या यह लोकतंत्र है? या एक वकीलों का “उच्च जातीय क्लब”, जिसमें घुसने का हक सिर्फ उन्हीं को है जिनकी जड़ें रसूख और रिश्तों में गहरी हैं?


🪤 Law Firms + Judges + SCBA Elites = नया ब्राह्मणवाद!

सुप्रीम कोर्ट में अब सामान्य अधिवक्ता के लिए जगह नहीं बची।
बड़े लॉ फर्म्स के सहयोग से कुछ वकीलों की लॉबी न सिर्फ केस छीन रही है, बल्कि कोर्ट रूम तक की पहुंच रोक रही है।

SCBA के चुनावों में भी यही लॉबी तय करती है कि अध्यक्ष कौन होगा, सेक्रेटरी कौन होगा, और कौन बोल पाएगा।

क्या ये एक लोकतांत्रिक संस्था है, या “Supreme Court Club of Capitalist Lawyers”?


⚖️ SCBA की मनमानी शर्तें = लोकतंत्र की हत्या

“Active Practice” की शर्त SCBA का सबसे घातक औजार है।

सवाल ये है:
अगर एक वकील बीमार है, या केस नहीं मिल रहे, या रिसर्च कर रहा है —
क्या वह SCBA चुनाव नहीं लड़ सकता?

क्या इसका मतलब ये है कि वकालत अब सिर्फ लॉ फर्म्स और कुलीन वंशों की ही जागीर बन गई?

SCBA की ये नीति न केवल असंवैधानिक है, बल्कि ये भारत के करोड़ों संघर्षशील वकीलों के सपनों की हत्या है।


🔥 SCBA अब नहीं, “SC Elite Bar Association” है!

कहने को तो SCBA पूरे देश के अधिवक्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
पर व्यवहार में यह संस्था बन गई है:
“कुछ” के लिए सबकुछ, और “बाकियों” के लिए कुछ नहीं।

  • कोई पारदर्शी पंजीकरण प्रक्रिया नहीं,
  • कोई ई-वोटिंग सिस्टम नहीं,
  • कोई आम चर्चा या सार्वजनिक डिबेट नहीं।

बस सत्ता का खेल और पुराने चेहरों की परिक्रमा!


🚨 अब वक्त है विद्रोह का!

अब सवाल उठाने का वक्त है:

  • क्या हम ऐसे ही चुप रहेंगे?
  • क्या वकील होने का मतलब बस लॉ फर्म के लिए चापलूसी करना रह गया है?
  • क्या SCBA संविधान से ऊपर है?

नहीं! अब नहीं!
अब वक्त है SCBA को संविधान की चौखट पर खड़ा करने का।


हमारी मांगें:

  1. SCBA चुनावों में “Active Practice” जैसी मनमानी शर्तें तुरंत हटाई जाएं।
  2. हर सदस्य को चुनाव में खड़े होने और वोट डालने का समान अधिकार मिले।
  3. चुनाव प्रक्रिया को पूर्णतः पारदर्शी और ऑनलाइन किया जाए।
  4. RTI के तहत SCBA की फंडिंग, लॉबींग और फैसलों की जानकारी सार्वजनिक हो।
  5. अगर SCBA बदलने को तैयार नहीं, तो एक “Alternative Supreme Court Bar Forum” बनाया जाए — जो सच्चे अधिवक्ताओं की आवाज़ बने।

📢 यह घोषणा है — SCBA का अबतक का सबसे बड़ा विरोध जन्म ले चुका है!

अब यह संघर्ष केवल एक संस्था का नहीं,
यह संघर्ष है न्यायपालिका में समानता, लोकतंत्र और प्रतिनिधित्व का।

अब लड़ाई अदालत के बाहर से शुरू होगी — और उस कोर्ट तक जाएगी, जो संविधान का असली रक्षक है।


Amaresh Yadav

Leave a comment

Design a site like this with WordPress.com
Get started