“झुग्गी बस्ती और गरीबों के नाम पर कब्जा गैंग: एक सुनियोजित लूट का राष्ट्रव्यापी खेल”
✍️ — अधिवक्ता अमरेष यादव


देश में झुग्गी बस्तियों और गरीबों के हक के नाम पर जो ड्रामा चल रहा है, वह एक सुनियोजित और संस्थागत लूट है। यह सिर्फ एक सामाजिक-आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि एक सियासी-भ्रष्ट गठजोड़ का गंदा खेल है — जिसमें कब्जा गैंग, भ्रष्ट अफसरशाही, प्रॉपर्टी माफिया और राजनीतिक दल चारों मिलकर जनता की आंखों में धूल झोंकते हैं।

🧱 गरीब नहीं, कब्जा गैंग है असली खिलाड़ी

देश के हर बड़े शहर में एक पैटर्न दिखाई देता है — रातों-रात झुग्गियां उगती हैं, सरकारी ज़मीन पर झंडा गाड़ा जाता है और फिर शुरू होता है ‘गरीबों के नाम पर कब्जे का धंधा’। लेकिन क्या यह गरीब खुद कर रहा है?

सच ये है कि झुग्गी में रहने वाला गरीब, सिर्फ मोहरा है। असली खिलाड़ी वो माफिया हैं, जो कब्जा कराते हैं, और फिर उससे वोट भी बनवाते हैं और पैसे भी कमाते हैं। झुग्गियों में पानी, बिजली, राशन, ID कार्ड, और यहां तक कि “पक्के मकान” तक पहुंचाने की प्राइवेट व्यवस्था भी यही गैंग करता है — कीमत लेकर।

🏗️ बिल्डरों और अफसरों का गठजोड़: कब्जा को वैधता का कवच

सरकारी ज़मीन पर कब्जा तबतक संभव नहीं जबतक सरकारी अफसर और नेता आँख मूंदकर न बैठे हों — या कहें कि आंखें मूंदने की कीमत न वसूल चुके हों।

  • DDA (दिल्ली विकास प्राधिकरण), MCD, और पुलिस— सब जानते हैं कहां कब कब्जा हो रहा है।
  • फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती, क्यों? क्योंकि हर झुग्गी की बुनियाद में कुछ अफसरों और नेताओं की जेब गर्म हो चुकी होती है।
  • बाद में इन्हीं कब्जों को “मानवाधिकार”, “गरीबी”, और “वोट बैंक” के नाम पर वैधता दी जाती है — और इस धंधे में बिल्डर भी पार्टनर बनते हैं।
    पहले झुग्गी बसवाओ, फिर पुनर्विकास के नाम पर बिल्डिंग बनाओ। दोनों तरफ से कमाई।

📊 कुछ तथ्य जो आंखें खोलने के लिए काफी हैं:

  • दिल्ली में लगभग 6 लाख झुग्गी परिवार हैं — जिनमें से 70% से अधिक को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।
  • CAG रिपोर्ट (2023) में खुलासा हुआ कि दिल्ली में झुग्गियों के नाम पर बने 1800 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट में घोर अनियमितताएं थीं।
  • RTI से पता चला कि DDA और MCD को हजारों शिकायतें मिलीं कब्जों की, लेकिन 10% से कम पर कार्रवाई हुई।

🔥 असली गरीब के साथ दोहरी लूट

जो वाकई गरीब है — वह न तो कब्जा कर सकता है, न ही नेताओं की चाटुकारिता।
उसे न राशन मिलता है, न मकान, न लोन।
क्यों? क्योंकि वो “मैनेज” नहीं है।
जबकि जो कब्जा गैंग के दलालों से जुड़ा है — उसके पास झुग्गी, वोटर ID, आधार, बिजली का मीटर और “गृहप्रवेश” तक का कार्ड मौजूद होता है।

👊 अब समय आ गया है कि असली कार्रवाई हो

  • झुग्गियों में राजनीतिक संरक्षण की जांच हो।
  • DDA और MCD के अधिकारियों की संपत्ति और कॉल डिटेल्स की CBI जांच हो।
  • कब्जा कराने वालों पर UAPA जैसी सख्त धाराएं लगें — क्योंकि ये शहरी आतंकवाद है।
  • गरीबों को वाकई मकान चाहिए तो ईमानदारी से EWS स्कीम लागू की जाए — कब्जे के धंधे को खत्म कर।

यह ‘गरीबों के नाम पर कब्जा’ एक सुनियोजित माफियावाद है, जिसकी जड़ें सिर्फ जमीन में नहीं — लोकतंत्र की आत्मा में धंसी हैं।
अगर अब भी आंखें नहीं खोलेंगे, तो अगली पीढ़ी भूमिहीन तो होगी ही, वोटविहीन भी होगी — क्योंकि लोकतंत्र की असली जमीन भी बिक चुकी होगी।


📣 आप इस विषय पर एक जन आंदोलन का हिस्सा बन सकते हैं। चुप रहना अब विकल्प नहीं है — यह साज़िश है, जिसे उजागर करना हम सबका कर्तव्य है।


अमरेष यादव

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