🔥 न्यायपालिका को ‘क्लीन’ दिखाने की आड़ में ‘गंदी लॉबी’ की सुरक्षा?
जस्टिस यशवंत वर्मा पर महाभियोग की हड़बड़ी के पीछे असली साज़िश क्या है? FIR से डर किसका है?
✍️ एडवोकेट अमरेष यादव | सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता

“यह सिर्फ एक जज को हटाने का मामला नहीं है – यह पूरी न्यायपालिका को शील्ड बनाने की साज़िश है।
और इस बार, वर्मा को नहीं, बल्कि सच को जलाया गया है।”
🔥 असली मामला क्या है?
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने की सूचना मिलती है। दमकल पहुंचती है। अगले दिन अचानक खबर चलती है — “कैश बरामद हुआ”।
फौरन सुप्रीम कोर्ट इन-हाउस जांच बैठाता है।
कौन-कौन सदस्य हैं?
तीन हाईकोर्ट के जज।
ना कोई SC जज, ना ही स्वतंत्र कानूनी विशेषज्ञ।
अब सरकार चाहती है कि उसी इन-हाउस रिपोर्ट के आधार पर महाभियोग प्रस्ताव लाया जाए।
🧠 लेकिन जरा सोचिए…
✅ यदि जस्टिस वर्मा दोषी हैं,
तो FIR क्यों नहीं?
किस बात का डर?
✅ और यदि दोष सिद्ध नहीं,
तो महाभियोग की जल्दबाज़ी क्यों?
👁️🗨️ साज़िश साफ है —
FIR से कोई और ‘गिर जाएगा’
और वो ‘कोई’ बेहद प्रभावशाली लॉबी का हिस्सा है!
- क्या आग लगना महज़ इत्तिफाक था?
- क्या कैश फंसाने के लिए रखा गया?
- दमकलकर्मियों ने रात को किसे फोन किया था?
- किसने CCTV बंद किए?
- किसकी ‘गाड़ी’ से कौन आया और गया?
👉 इन सारे सवालों के जवाब FIR और पुलिस जांच से ही सामने आ सकते हैं।
लेकिन यहीं लॉबी कांप रही है।
🎯 इसलिए FIR नहीं चाहिए!
क्योंकि FIR:
- कोर्ट के बाहर की लॉबीज़ का सच खोल देगी।
- पॉलिटिकल कनेक्शन की परतें उतार देगी।
- और सबसे ज़्यादा –
कई “ईमानदार चेहरों” की असलियत नंगी कर देगी।
इसीलिए पूरा खेल चल रहा है —
इन-हाउस रिपोर्ट को ही “आख़िरी सबूत” बना दो,
और FIR की ज़रूरत ही ख़त्म कर दो!
🧨 अब CJI की भूमिका पर भी सवाल उठना लाज़मी है:
- CJI FIR की अनुमति क्यों नहीं दे रहे?
- अगर जांच इतनी पक्की है, तो जांच से डर कैसा?
क्या CJI भी उस लॉबी के दबाव में हैं
जो चाहती है कि
“जांच बंद, महाभियोग पास, मामला खत्म”?
📢 सरकार क्या कर रही है?
- सरकार संसद में महाभियोग लाने की तैयारी में है।
- लेकिन सरकार ने FIR के लिए CJI से आधिकारिक अनुमति तक नहीं मांगी!
क्यों?
क्या सरकार भी जानती है कि FIR की आग में उसका भी हाथ जल जाएगा?
कहीं ऐसा तो नहीं कि अगर FIR हो गई,
तो सरकार के कुछ लोग, लॉबी के दोस्त या न्यायिक दलाल बेनकाब हो जाएंगे?
📌 निष्कर्ष:
यह पूरा मामला जस्टिस वर्मा का नहीं है,
यह लड़ाई उस माफिया लॉबी से है
जो सुप्रीम कोर्ट की छाया में फल-फूल रही है।
वर्मा सिर्फ एक मोहरा हैं —
असल निशाना FIR रोकना और असली अपराधियों को बचाना है।
🛑 हमारी मांग:
- CJI को तुरंत FIR की अनुमति देनी चाहिए।
- अगर CJI चुप हैं, तो सरकार को सार्वजनिक रूप से FIR की मांग करनी चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट और संसद दोनों को न्यायिक पारदर्शिता का उदाहरण पेश करना चाहिए।
वरना जनता यही समझेगी कि…
“ये मामला जज की गरिमा का नहीं,
बल्कि सत्ता और न्यायपालिका की मिलीभगत का है।”
✍️ एडवोकेट अमरेष यादव
(सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता | संविधानवादी विश्लेषक | न्यायिक पारदर्शिता के पक्षधर)
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