🔥 “राजनीति में माफिया मिटते नहीं… भगवा पहन लेते हैं!”

चेहरों को ध्यान से देखिए — ये किसी माफिया फ़िल्म के पोस्टर से नहीं, उत्तर प्रदेश की राजनीति की असल तस्वीर से हैं।
और अब सवाल उठता है…
बीजेपी सरकार इन्हें क्यों मिटाएगी?
जब ये उनके “Electoral Assets” हैं — उनका मिटना तो राजनीतिक नुकसान होगा!
लेकिन असली अफ़सोस तो तब हुआ जब समाजवादी सरकार के पास मौका था — पर उन्होंने भी क़ानून के आगे धर्म और जातिगत समीकरणों को तवज्जो दी।
नेता जी ने भी, और अखिलेश ने भी…
🧿 नेता जी ने नाम नहीं लिए… लेकिन इशारे में पूरी ‘मंडली’ बता दी!
संसद में मुलायम सिंह यादव ने गर्व से कहा था:
“बीजेपी के बड़े नेता ने कहा कि इन्हें छोड़ दीजिए। और मैंने छोड़ दिया!”
अब सोचिए…
बीजेपी के नेता का फोन आता है और मुलायम सिंह जैसा दिग्गज नेता… माफियाओं को ‘पार्टी मित्र’ समझकर छोड़ देता है?
नाम नहीं लिए, पर इशारा इतना साफ़ था कि उत्तर प्रदेश का बच्चा-बच्चा समझ गया कि बात किन लोगों की हो रही थी:
- बृजेश सिंह
- रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया)
- बृजभूषण शरण सिंह
- और धनंजय सिंह
🧨 पर अब असली बम तो ये है… ‘महंत’ को भी छोड़ दिया गया था!
योगी आदित्यनाथ, तब गोरखपुर के सांसद, जिनपर आजन्म कारावास तक की संभावनाएं थीं —
उनके खिलाफ़ दंगों, सांप्रदायिक भाषण और उकसाने के मामलों में मजबूत सबूत मौजूद थे।
फिर भी…
अखिलेश सरकार ने चार्जशीट दाखिल करने से इंकार कर दिया।
अब सोचिए —
जो आदमी बाद में राज्य का मुख्यमंत्री बना, क्या उसे बचाने का काम समाजवादियों ने किया?
क्या सपा ने भविष्य के ‘महंत मुख्यमंत्री’ को सत्ता में लाने की नींव खुद रखी थी?
⚖️ फिर क्यों नहीं मिटाए गए ये चेहरे?
जब सत्ता सपा के पास थी — तब ये सारे कानून की पकड़ से बाहर क्यों रहे?
क्या:
- भाजपा के “अनुरोध” पर छोड़ दिया गया?
- या जातीय समीकरण और भय ने इन बाहुबलियों को राजनीतिक संरक्षण दिया?
क्योंकि यही लोग बाद में पार्टी बदलकर, पाला बदलकर, ‘राजनीतिक संत’ बन गए।
🎭 बीजेपी ने क्या किया?
अब ये सारे लोग बीजेपी के साथ हैं —
और इनकी छवि का मेकओवर ऐसा किया गया है, जैसे “राजनीति की गंगा” में डुबकी लगाकर सारे पाप धो दिए गए हों:
- बृजभूषण पर आरोप हैं, फिर भी पार्टी मंच साझा करती है।
- बृजेश सिंह पर माफिया के आरोपों का कोई ज़िक्र नहीं करता।
- राजा भैया खुद को स्वतंत्र बताते हैं, लेकिन उनके बयान BJP लाइन से बाहर नहीं जाते।
- धनंजय सिंह को सजा हो चुकी है — फिर भी उनके लिए ‘soft corner’ है।
- और महंत, यानी योगी जी… जिनके केस पर चुप्पी की समाधि लगा दी गई है।
🧨 तो ये राजनीति है या माफिया माफ़ी योजना?
समय स्थिति सपा सरकार सारे केस दबाए गए, बीजेपी के कहने पर छोड़ दिए गए बीजेपी सरकार उन्हीं लोगों को टिकट, सुरक्षा और मंत्रालय मिल गया जनता बस भावनाओं से खेलती रही — कानून, अपराध, नैतिकता सब हार गए
🎯 निष्कर्ष: यूपी की राजनीति का नया श्लोक — ‘जो जितना अपराधी, वो उतना ही उपयोगी!’
नेता जी ने संसद में कबूल किया कि उन्होंने छोड़ दिया।
अखिलेश ने केस नहीं चलाया।
बीजेपी ने सभी को गले लगाया।
और जनता ने सबको फिर से वोट दिया।
अब बताइए — यह लोकतंत्र है या जातिगत आपराधिक गठजोड़ का महापर्व?
क्या हम इतने मजबूर हो चुके हैं कि अब माफिया भी चुनावी विकल्प बन गए हैं?
क्या धर्म और जाति के चश्मे से ही अपराध तय होगा?
अगर आज आप चुप हैं —
तो अगला बृजभूषण, अगला राजा भैया, अगला ‘महंत’ — पहले से ज्यादा ताकतवर होकर सामने आएगा।
📢 यह पोस्ट सिर्फ गुस्से की अभिव्यक्ति नहीं है — यह सवालों का हथौड़ा है। मारिए इस सिस्टम पर।
पढ़ें, सोचें, और बोलें। क्योंकि चुप्पी भी अपराध है।
अमरेष यादव

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