⚖️ भारत में साइंटोलॉजी: एक विदेशी मनोवैज्ञानिक धोखा जो कानून की पकड़ से बाहर है

— अधिवक्ता अमरेष यादव
भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक विविधता ने हमेशा नए विचारों और विश्वासों को जन्म दिया है। लेकिन जब कोई विदेशी संप्रदाय धर्म, मानसिक चिकित्सा और स्व-सहायता के नाम पर बिना किसी पंजीकरण, निगरानी या जवाबदेही के काम करता है, तो यह न केवल कानून का मज़ाक उड़ाता है बल्कि आम नागरिकों के मानसिक और आर्थिक स्वास्थ्य पर सीधा हमला करता है।
“साइंटोलॉजी” एक ऐसा ही उदाहरण है — जो भारत में चुपचाप, लेकिन खतरनाक तरीक़े से फैल रही है।
🤔 धर्म, थेरेपी या ठगी?
साइंटोलॉजी, जिसे अमेरिकी लेखक एल. रॉन हबर्ड ने स्थापित किया था, कई देशों में धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है। लेकिन भारत में इसकी कोई धार्मिक मान्यता नहीं है। फिर भी यह कई शहरों — जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद — में “डायनेटीक्स सेंटर” या “सेल्फ-हेल्प कोर्स” के नाम पर चल रही है।
यह केंद्र “ऑडिटिंग”, “लाइफ रिपेयर”, “स्ट्रेस मैनेजमेंट” जैसे कोर्सों के ज़रिए लोगों को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सफलता का वादा करते हैं — लेकिन इसके पीछे छिपा होता है एक विदेशी धार्मिक संगठन और मनोवैज्ञानिक नियंत्रण का खतरनाक जाल।
🧠 मानसिक स्वास्थ्य या मानसिक शोषण?
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के अनुसार, केवल पंजीकृत मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर ही किसी को परामर्श या इलाज दे सकते हैं। लेकिन साइंटोलॉजी के “ऑडिटिंग सेशंस” में:
- कोई लाइसेंस नहीं
- कोई डॉक्टर नहीं
- कोई सरकारी निरीक्षण नहीं
फिर भी वहां व्यक्ति के बचपन, अपराधबोध, अवसाद और ट्रॉमा को उकेरकर गोपनीय “सत्रों” में इस्तेमाल किया जाता है। यह न केवल मानसिक प्रताड़ना है, बल्कि Article 21 (जीवन और गरिमा का अधिकार) का भी स्पष्ट उल्लंघन है।
💰 आर्थिक ठगी: ट्रस्ट और NGO की आड़ में व्यापार
भारत में साइंटोलॉजी के अधिकतर केंद्र धर्म या चिकित्सा संस्थान की तरह नहीं बल्कि एनजीओ, ट्रस्ट या कंपनी के रूप में पंजीकृत होते हैं। इनके माध्यम से लाखों रुपये में सेमिनार, किताबें, कोर्स और “E-meter” उपकरण बेचे जाते हैं।
बहुत बार यह केंद्र विदेशी फंडिंग भी लेते हैं, बिना उचित FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) अनुपालन के। इससे यह विदेशी मानसिक उपनिवेशवाद जैसा लगता है — भारत की कानूनी कमजोरियों का लाभ उठाकर।
🛑 अब समय है कानूनी और न्यायिक हस्तक्षेप का
दुनियाभर में साइंटोलॉजी को लेकर विवाद रहे हैं —
- फ्रांस में धोखाधड़ी का दोषी करार
- रूस में बैन
- जर्मनी में असंवैधानिक संगठन घोषित
भारत में यह सब बिना किसी जांच के चुपचाप चल रहा है। समय आ गया है कि हम नीचे दिए गए कानूनी रास्तों को अपनाएं:
🧾 1. उच्च न्यायालय में जनहित याचिका (PIL)
- मानसिक स्वास्थ्य कानून के उल्लंघन की जांच की मांग
- इन संस्थाओं की गतिविधियों को पारदर्शी और पंजीकृत करने का निर्देश
- उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत कार्यवाही
📢 2. मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण में शिकायत
- बिना लाइसेंस मानसिक “हीलिंग” को प्रतिबंधित करवाना
- ऑडिटिंग को चिकित्सा प्रक्रिया घोषित कर रोक लगवाना
💸 3. NGO/ट्रस्ट रजिस्ट्रार, गृह मंत्रालय व आयकर विभाग में शिकायत
- विदेशी चंदे की जांच
- गलत उद्देश्यों से NGO पंजीकरण को रद्द करवाना
- आयकर छूट और चंदे का दुरुपयोग उजागर करना
🔚 निष्कर्ष: मानसिक गुलामी की शुरुआत?
भारत सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा वाला देश है — उसे झूठे, वैज्ञानिकता-विहीन और गुप्त विदेशी संगठनों का अड्डा बनने नहीं दिया जा सकता।
साइंटोलॉजी जैसे संगठन न केवल हमारी मानसिक स्वतंत्रता, बल्कि कानूनी व्यवस्था, स्वास्थ्य प्रणाली, और सार्वजनिक विश्वास पर भी हमला कर रहे हैं।
एक अधिवक्ता होने के नाते, यह हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि हम ऐसे संगठनों को न्यायिक जांच के दायरे में लाएं — ताकि भारत में मानसिक स्वास्थ्य का बाज़ारीकरण और मनोवैज्ञानिक ठगी पर रोक लगे।
✍️ अधिवक्ता अमरेष यादव एक संवैधानिक मामलों, मानसिक स्वास्थ्य नीति और छद्म-धार्मिक संगठनों पर विशेषज्ञ राय रखने वाले कानूनी लेखक हैं।
Amaresh Yadav
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