“मीम छाप टीचर: शिक्षा नहीं, मनोरंजन की मंडी!”
✍🏻 By Advocate Amaresh Yadav

आजकल शिक्षा के नाम पर सोशल मीडिया पर एक नया प्रजाति उभरा है — “मीम छाप रीलबाज टीचर!”
जो पढ़ाने से ज़्यादा स्टूडियो में इंटरव्यू देता है, YouTube पर हेडफोन लगाकर ज्ञान की चोचलेबाज़ी करता है, और Reel में “हुलाला”, “ससुरा”, “मेकअप” जैसे शब्दों से बच्चों का भविष्य तय करता है।
ANI जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर बैठकर जब कोई यह कहता है कि “रेपिस्ट को वकील नहीं मिलना चाहिए,” तो यह न सिर्फ मूर्खता है बल्कि संविधान की मूल आत्मा का अपमान है।
📌 तथ्य और तर्क क्या कहते हैं?
- कानून कहता है, हर आरोपी को बचाव का अधिकार है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22(1) कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से ही वकील से सलाह लेने का अधिकार है। - रेपिस्ट नहीं, आरोपी होता है!
किसी पर बलात्कार का आरोप लगा है, इसका मतलब यह नहीं कि वह अपराधी है। “निर्दोष जब तक सिद्ध न हो जाए दोषी” — यही न्याय का मूल सिद्धांत है। ये फैसला अदालत करती है, न कि किसी फर्जी टीचर की ज़ुबान। - वकील नैतिकता के ठेकेदार नहीं, संविधान के रक्षक हैं।
एक वकील का काम है कि वह कानून के दायरे में रहकर अपने क्लाइंट की वैध सुरक्षा करे। अगर वकील अपना काम करना बंद कर दें, तो पूरा न्याय तंत्र ही ढह जाएगा।
🎭 इनका एजेंडा क्या है?
- ज्ञान नहीं, तमाशा बेचते हैं।
शिक्षा को मनोरंजन की मंडी बना दिया गया है। “टीचर” अब क्लासरूम में नहीं, स्टेज शो में मिलते हैं — स्क्रिप्टेड सवाल, एक्टिंग वाला गुस्सा, और घटिया जुमलों का ज़खीरा लेकर। - महिलाओं पर फूहड़ टिप्पणियाँ, छात्रों पर अश्लील लहजा।
लड़कियों के पहनावे, मेकअप या चाल पर कमेंट करना इनका ‘शिक्षा’ है? ये टीचर नहीं, “सोशल मीडिया स्टंटबाज़” हैं। - फर्जी डिफेंस स्टडी स्कॉलर — जो सेना, पुलिस, या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषयों पर भी बिना पढ़े, बिना सोचे उलजलूल बयान देते हैं।
🧠 समाधान क्या है?
- “Teacher Licensing Act” की ज़रूरत है।
जैसे वकालत के लिए बार काउंसिल है, वैसे ही शिक्षकों के लिए एक वैधानिक लाइसेंसिंग सिस्टम होना चाहिए।- जिसमें न्यूनतम योग्यता, आचार संहिता, और वैधानिक अनुशासन हो।
- कोई भी टीचर झूठ या कुतर्क फैलाने पर निलंबित किया जा सके।
- एजुकेशनल प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय हो।
यूट्यूब, इंस्टाग्राम या OTT पर जो भी एजुकेशनल कंटेंट डाला जाए, उसकी गुणवत्ता की मॉनिटरिंग हो। - छात्रों और अभिभावकों को जागरूक होना पड़ेगा।
टीचर का काम ‘गाइड’ करना है, ‘ग्लैमराइज’ करना नहीं। जिनकी भाषा में गरिमा नहीं, सोच में तथ्य नहीं — उनसे शिक्षा नहीं मिलती, सिर्फ कचरा मिलता है।
❗ अंत में एक सवाल…
क्या शिक्षा की दुनिया में हम इतने गिर चुके हैं कि “गाली, गप्प और गलती” को ज्ञान मानने लगे हैं?
शिक्षा मज़ाक नहीं है। शिक्षक मज़ाकिया हो सकते हैं, लेकिन शिक्षा को मज़ाक नहीं बना सकते।
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अगर कोई रेपिस्ट को वकील न देने की बात करे, तो समझिए वह न न्याय समझता है, न संविधान… और न ही शिक्षा।
अमरेष यादव
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