“संवेदनशीलता का मुखौटा पहनकर जनता को ठगने वाला राजीव राय – एक मुखर प्रतिवाद”
✍️ Advocate Amaresh Yadav, Supreme Court of India

डॉ अनिल यादव

“भूमाफिया बोलने पर रो पड़े!”
वाह रे जनसेवक! चोरी भी, सीना ज़ोरी भी और ऊपर से आंसू बहाकर सहानुभूति भी! राजीव राय की हालिया “इमोशनल ड्रामा प्रेस रिलीज़” कोई नया प्रयोग नहीं है। यह वही पुराना पैंतरा है — अपराधी बनने के बाद ‘बलिदानी’ बनने की कोशिश। लेकिन अब जनता न बेवकूफ है, न भोली।

राजीव राय, जिन पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल यादव ने ज़मीन कब्ज़ा करने का गंभीर आरोप लगाया है, अब “रुआंसे” हो रहे हैं? जब ज़मीन के रजिस्ट्री दस्तावेज़ों को दरकिनार कर जेसीबी से रास्ता निकालकर अवैध कब्ज़ा किया गया, तब क्या वे “संवेदनशील” नहीं थे? जब बग़ैर नगरपालिका अनुमति, बिना विभागीय मंज़ूरी, लोगों की पुश्तैनी जमीन को कुचला गया, तब उनकी ‘सुलझी हुई सोच’ कहाँ थी?


🔥 1. राजीव राय एक ठग हैं, जनसेवक नहीं

राजीव राय आज PDA की बात करते हैं, लेकिन उसी PDA समाज — यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग — के शिक्षक प्रो. अनिल यादव की ज़मीन पर कब्जा कर रहे हैं।
यह कैसा PDA है, जहाँ P का वोट लेकर उसी P की ज़मीन पर JCB चलवा दी जाती है?

सवाल यह नहीं कि वे सत्ता पक्ष में हैं या नहीं, सवाल यह है कि क्या सांसद का दर्जा उन्हें जनता की ज़मीन कब्जा करने की छूट देता है?


🔥 2. “यह मामला पुराना है” — तो क्या अपराध की उम्र उसे वैध बना देती है?

मूल दस्तावेज़ के अनुसार न किसी ‘रास्ते’ का उल्लेख है, न किसी स्वीकृति का। फिर यह नया रास्ता कहाँ से आया? क्या सांसद बनने का मतलब है कि JCB से रास्ता बना दो और जब जनता विरोध करे तो प्रेस रिलीज़ में रो लो?


🔥 3. भूमिहार समाज का नेता होना अपराध से बचने की ढाल नहीं है

“पूर्वांचल में भूमिहारों का एकमात्र बड़ा नेता हैं” — क्या यह प्रमाण है कि वह निर्दोष हैं?
नेता होने का मतलब यह नहीं कि आप क़ानून से ऊपर हैं।
राजीव राय ने न सिर्फ़ क़ानून तोड़ा है, बल्कि जातीय ध्रुवीकरण के नाम पर अपने अपराध को ढकने की कोशिश की है।


🔥 4. संवेदनशील व्यक्ति ज़मीन कब्जा नहीं करता

संवेदनशील व्यक्ति जनता की पीड़ा समझता है, उन्हें कुचलता नहीं।
राजीव राय का यह नाटक कि “वह रुआंसे हो गए” — यह एक सोची समझी PR चाल है।
कब्ज़ा करो, फिर रोओ, फिर प्रेस रिलीज़ में खुद को शहीद घोषित करो।


🔥 5. अगर वे निर्दोष हैं तो कोर्ट जाएं, प्रेस रिलीज़ क्यों?

साफ़ सवाल: अगर राजीव राय निर्दोष हैं, तो वे कोर्ट क्यों नहीं जाते?
प्रेस रिलीज़ क्यों? मीडिया मैनेज क्यों? और अपने समर्थकों से झूठे भावनात्मक लेख क्यों लिखवाते हैं?


🔥 6. BNS की धाराओं के अनुसार यह गंभीर अपराध है

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 304 (2) — यदि कोई व्यक्ति कूट रचना या धोखाधड़ी से किसी की संपत्ति पर अवैध रूप से अधिकार जमाता है, यह गंभीर अपराध है।
धारा 316 — आपराधिक बलपूर्वक संपत्ति पर अतिक्रमण।
धारा 73 और 74 — सरकारी अनुमति के बिना सार्वजनिक निर्माण कार्य अवैध है।


🔴 निष्कर्ष:

राजीव राय एक ठग प्रवृत्ति के नेता हैं, जो PDA वोट के नाम पर सत्ता तक पहुँचते हैं और फिर उसी समाज को रौंदते हैं। यह उनका पुराना चरित्र है — “मासूम चेहरा, मगर बेईमानी की राजनीति।”
जो सांसद लोगों की ज़मीन हड़पकर रोता है, वह संवेदनशील नहीं, बल्कि राजनीतिक ठग है।
अब जनता को न रोना चाहिए, न सहना — बल्कि ऐसे धोखेबाजों को लोकतंत्र से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।


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✍️ Advocate Amaresh Yadav, Supreme Court of India

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