“भूमि विवाद की सच्चाई और अनिल यादव को ‘मुखौटा’ कहने वालों के झूठ का पर्दाफाश”
—Advocate Amaresh Yadav, Supreme Court of India

भूमिका:
सार्वजनिक विमर्श में जब तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रचारित किया जाए और एक व्यक्ति को योजनाबद्ध तरीके से बदनाम करने का प्रयास हो—तो सत्य के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी हो जाता है। हाल ही में एक सोशल मीडिया पोस्ट में अनिल यादव को “ठाकुरों का मुखौटा” कहा गया और पूरी ज़मीन विवाद की सच्चाई को दबाकर, एक सुव्यवस्थित साजिश के तहत सांसद राजीव राय को दूध का धुला दिखाने की कोशिश की गई। इस पोस्ट का कानूनी और तर्कसंगत विश्लेषण प्रस्तुत है:
**1. “राजीव राय ने कोई क़ब्ज़ा नहीं किया” — झूठा तर्क
तथ्य यह है कि जिस भूमि (Gata no. 1143, Rakba 0.0270 hectare) की बात की जा रही है, वह विवादित नहीं है। वह भूमि अनिल यादव की वैध रजिस्ट्री व दाखिल-खारिज के आधार पर क़ानूनी स्वामित्व में है।
👉 14 जून 2024 को जब निर्माण सामग्री वहां पहुंचाई गई, उसी दिन राजीव राय द्वारा उस पर खुदाई शुरू कर दी गई—जबकि ना कोई उनके नाम का दाखिला है, ना वसीयत, ना खरीद।
यदि कब्ज़ा नहीं था तो निर्माण क्यों रोका गया?
कौन सी न्याय व्यवस्था मिट्टी डालने की अनुमति देती है बिना मालिक की अनुमति के?
**2. “रास्ता सबका था” — ग़लत दलील
यदि रास्ता ‘सबका’ था, तो क्या सांसद को किसी विशेषाधिकार के तहत उस पर जेसीबी चलवाने की अनुमति थी?
👉 क्या उन्होंने अन्य लोगों को भी वैसा ही निर्माण या समतलीकरण करने दिया?
👉 क्या इलियास साहब ने कभी शिकायत की कि अनिल यादव रास्ता रोक रहे हैं?
वास्तविकता यह है कि इलियास साहब की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई, और यदि आती भी तो वह सिविल प्रकृति का विवाद होता, न कि राजनीतिक आरोपों का हथियार।
**3. “ठाकुर अजय सिंह की ज़मीन है” — फैक्ट मैनिपुलेशन
पोस्ट में बार-बार ठाकुर अजय सिंह का नाम लाया गया है जबकि ज़मीन विवाद का उनसे कोई सीधा संबंध नहीं है।
👉 अजय सिंह की भूमि अलग प्लॉट संख्या में है।
👉 उन्होंने राजस्व अभिलेखों में अनिल यादव के प्लॉट पर कभी दावा नहीं किया।
क्यों सांसद समर्थक उन्हें जबरन इस विवाद में घसीटना चाहते हैं?
क्या इसलिए कि उन्हें यादव बनाम ठाकुर करार देकर जनभावनाओं को तोड़ा जा सके?
**4. “राजनीतिक विद्वेष” — मुख्य एजेंडा
जिस दिन अनिल यादव ने निर्माण कार्य रोकने की शिकायत की, उसी दिन लोकल भाजपा और राजभर नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय हो उठे।
👉 क्या ये संयोग है कि सांसद समर्थक आईटी सेल ने उस दिन से अनिल यादव को ‘ठाकुरों का एजेंट’ बताना शुरू किया?
👉 क्या ये संयोग है कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद, सबसे पहले पीडीए वोटों को भटकाने की रणनीति बनाई गई?
असल रणनीति है—
- पूर्वांचल के भूमिहार-सपा समीकरण को तोड़ना।
- यादवों के भीतर यह भ्रम फैलाना कि “राजीव राय उनके खिलाफ नहीं, उनके लिए लड़ रहे हैं।”
**5. “सत्ता का दुरुपयोग और प्रशासनिक दबाव”
राजस्व रिकॉर्ड, रजिस्ट्री, खतौनी, दाखिला—सभी अनिल यादव के पक्ष में हैं। इसके बावजूद आज तक:
- थाना सुनवाई नहीं करता,
- एसडीएम कार्रवाई नहीं करते,
- और स्थानीय मंत्रीगण चुप हैं।
यदि सांसद बेगुनाह हैं तो वो खुद SDM को पत्र लिखकर जांच क्यों नहीं चाहते?
क्यों नहीं इस विवाद को निष्पक्ष जांच से सुलझाने की अपील करते?
**6. ठाकुर अजय सिंह की चुप्पी — शंका को जन्म देती है
यदि जमीन उनकी होती,
👉 तो वो सामने आकर दावा करते।
👉 अनिल यादव को सामने लाकर पीछे क्यों रहते?
क्या ये सच्चाई नहीं कि सांसद साहब को बचाने के लिए ठाकुर बनाम यादव का कार्ड खेला जा रहा है?
क्या इसलिए अजय सिंह ने अब तक कोर्ट में कोई केस नहीं डाला?
**निष्कर्ष:
अनिल यादव एक सजग नागरिक हैं, जो अपने क़ानूनी अधिकार के लिए खड़े हैं।
उन पर व्यक्तिगत हमले, जातीय बदनामियाँ और राजनीतिक दुष्प्रचार — सब इस बात के प्रमाण हैं कि वे सही राह पर हैं।
जब संविधान के अधिकारों का अपमान हो,
और सत्ता समर्थित झूठ का बोलबाला हो —
तो सत्य बोलना ही असली ‘पीडीए’ धर्म है।
✍️ Advocate Amaresh Yadav
Supreme Court of India
“संविधान का साथ, हर अन्याय के खिलाफ।”
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