लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सर्वोच्च न्यायालय

भूमाफिया सांसद बनाम प्रोफेसर अनिल यादव : जब पीड़ित को ही बना दिया गया अपराधी
पूर्वांचल की राजनीति में एक बेहद शर्मनाक और खतरनाक ट्रेंड देखने को मिल रहा है — जब एक आम नागरिक, एक प्रोफेसर, अपनी पैतृक संपत्ति की रक्षा करता है, तो सत्ता-संपन्न लोग उसे बदनाम करने के लिए संगठित मीडिया प्रोपेगेंडा का सहारा लेते हैं।
प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार यादव — एक सम्मानित शिक्षक, सामाजिक चिंतक और जागरूक नागरिक — आजकल अपने ही ज़मीन के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला है सपा सांसद राजीव राय से, जिन पर पहले से ही कई गंभीर आरोप हैं कि उन्होंने अपने रसूख और धनबल का इस्तेमाल करके ज़मीन कब्जाने की कोशिश की है।
जब ठग सत्ता में हो, तो पीड़ित बनता है ‘अवैध कब्जाधारी’
शर्मनाक बात यह है कि राजीव राय की PR टीम ने सोशल मीडिया पर एक संगठित अभियान चलाया है, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि डॉ. अनिल यादव ही ‘नगर पालिका की ज़मीन’ पर अवैध कब्जा किए हुए हैं। यह एक सोची-समझी रणनीति है जिसमें –
- कुछ पत्रकारों को भारी भुगतान करके झूठी खबरें फैलवाई जा रही हैं,
- सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और पेड पेजों से बदनाम करने वाले पोस्ट डलवाए जा रहे हैं,
- और न्याय की मांग करने वाले को “BJP का एजेंट” करार देने की साजिशें रची जा रही हैं।
यह एक क्लासिक केस है organized digital defamation का — जिसमें ताकतवर व्यक्ति खुद को बचाने के लिए पीड़ित को ही अपराधी बना देता है।
राजीव राय की भूमिका: संगठित अपराध का चेहरा?
राजीव राय का इतिहास देखें तो उनका राजनीति में प्रवेश पैसे और सत्ता के गठजोड़ से हुआ। शिक्षा, जनसेवा या विचारधारा से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वे समाजवादी पार्टी के मुखौटे के पीछे छिपकर भूमाफिया शैली की राजनीति करते हैं।
- क्या यह संयोग है कि उनके ऊपर पहले भी ज़मीन कब्जाने के मामले उठ चुके हैं?
- क्या यह मात्र ‘राजनीतिक आरोप’ है कि वे पुलिस, प्रशासन और पेड मीडिया को अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं?
- क्या यह केवल नैतिक विचलन है कि एक प्रोफेसर की निजी संपत्ति पर कब्जा करने के प्रयास को उल्टा दिखाया जा रहा है?
कानूनी दृष्टिकोण: यह मात्र नागरिक विवाद नहीं, बल्कि गंभीर आपराधिक मामला है
न्यायिक दृष्टि से यह मामला सिर्फ सिविल टाइटल विवाद नहीं है — यह Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) 2023 की निम्नलिखित धाराओं के तहत संज्ञेय अपराध बनता है:
- धारा 77 (भूमि से अवैध कब्जा हटवाना या हस्तांतरण का धोखा)
- धारा 69 (झूठी जानकारी से अपमानित करना)
- धारा 73 (अवैध रूप से सार्वजनिक व्यक्ति को गलत रूप में प्रस्तुत करना)
- धारा 354 (डिजिटल माध्यम से मानहानि और अपमान की साजिश)
यदि किसी व्यक्ति ने किसी नागरिक को जानबूझकर और सुनियोजित तरीके से बदनाम करने की कोशिश की है, तो वह सिर्फ ‘राय व्यक्त करना’ नहीं, “Defamation by Conspiracy” (BNS Sec 356) का मामला बनता है।
समाज और राजनीति का सवाल: क्या शिक्षा का सम्मान बचा रहेगा?
क्या एक प्रोफेसर की आवाज इसीलिए दबा दी जाएगी क्योंकि सामने एक सांसद खड़ा है? क्या अब सत्य बोलना अपराध है और झूठ बोलने की ताकत ही राजनीति है?
राजीव राय जैसे लोग सत्ता, संगठित अपराध और मीडिया प्रबंधन के गठजोड़ का चेहरा हैं। ये वही लोग हैं जो “भूमिहीनों के लिए लड़ने” की बात करते हैं और खुद दूसरों की ज़मीन निगल जाते हैं।
निष्कर्ष: यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, समाज की लड़ाई है
डॉ. अनिल यादव की लड़ाई सिर्फ एक जमीन की नहीं, सत्य बनाम सत्ता, और शिक्षा बनाम ठगशाही की लड़ाई है। और इस लड़ाई में हम सबको उनके साथ खड़ा होना होगा — क्योंकि अगर आज एक प्रोफेसर को झूठा बता दिया गया, तो कल हर ईमानदार व्यक्ति डरकर चुप हो जाएगा।
✍🏻 लेखक:
अधिवक्ता अमरेष यादव
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
(जनहित, मीडिया अपराध, और सामाजिक न्याय मामलों में विशेषज्ञ)
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