“हिम्मत होती तो अजय सिंह के ज़मीन से रास्ता निकालते!”

— एक प्रोफेसर की ज़मीन पर राजनीतिक हेकड़ी का कच्चा चिट्ठा

✍️ लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया


🔍 मुद्दे की जड़: एक रास्ते की ज़मीन पर ज़ोर-जबर्दस्ती

यह पूरा विवाद मऊ ज़िले के एक छोटे से भूखंड के चारों ओर रचा गया है, जो एक संवेदनशील प्रोफेसर की संपत्ति है। इसमें क़ब्ज़े की बात, जातीय ध्रुवीकरण, और राजनीतिक बदले की भावना, तीनों चीज़ें शामिल हैं।

आरोप लगाने वाले लोग दावा कर रहे हैं कि यह कोई “आम रास्ता” है, जबकि CA, अजय सिंह और अनिल यादव – तीनों की ज़मीनें इस क्षेत्र में अलग-अलग स्पष्ट रूप से दर्ज हैं।

👉 CA यानी चार्टर्ड अकाउंटेंट की ज़मीन भी इसी रास्ते के किनारे है।
👉 अजय सिंह (ठाकुर) की ज़मीन अनिल यादव की ज़मीन के बगल में है।
👉 और अनिल यादव की ज़मीन उस हिस्से में है, जिस पर “आम रास्ते” के नाम पर अनधिकृत रूप से मिट्टी डालकर समतलीकरण किया गया।


📜 तथ्य 1: अजय सिंह का प्लॉट – स्वतंत्र और अलग है

भूमि अभिलेखों में यह स्पष्ट है कि अजय सिंह का भूखंड एक स्वतंत्र खाता संख्या में दर्ज है।
वे इस ज़मीन के “को-ओनर” या साझेदार नहीं हैं, न ही उनका कोई दावा अनिल यादव की ज़मीन पर है।

👉 फिर सवाल यह उठता है कि— जब रास्ता निकालना ही था, तो अजय सिंह की ज़मीन से क्यों नहीं निकाला गया?

क्या इसलिए कि अजय सिंह ठाकुर हैं और प्रोफेसर साहब यादव?
क्या इसलिए कि कोई कमजोर दिखता है, इसलिए उसकी ज़मीन पर रास्ता निकालना आसान है?


📜 तथ्य 2: “आम रास्ता” – झूठे प्रचार का हथियार

“आम रास्ता” का दावा केवल दिखावे के लिए है।

👉 जिस रास्ते की बात हो रही है वह ना तो राजस्व अभिलेख में “पब्लिक वे” के तौर पर दर्ज है,
👉 ना ही किसी अधिकारी ने अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी की है।

मिट्टी डालकर रास्ता बनाना कोई वैधानिक अधिग्रहण नहीं होता।


📜 तथ्य 3: राजीव राय की चुप्पी और अजय सिंह की भूमिका

राजीव राय महोदय ने अब तक किसी प्रेस कांफ्रेंस में स्पष्ट नहीं किया कि उन्होंने किस जमीन से रास्ता निकाला, न ही उन्होंने अजय सिंह की ज़मीन के सन्दर्भ में कोई प्रश्न उठाया।

👉 यदि उनके इरादे सही होते, तो वो अपने करीबी अजय सिंह की ज़मीन से रास्ता निकालने का प्रयास करते।
👉 लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्यों? क्योंकि शायद राजनीति में यादव पर हेकड़ी दिखाना आसान और लाभदायक होता है।


📜 तथ्य 4: साझेदारी का झूठा भ्रम

कुछ लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि अनिल यादव की ज़मीन में अजय सिंह साझेदार हैं।
यह पूरी तरह झूठ है और राजस्व अभिलेखों में इसका कोई प्रमाण नहीं है।

👉 ऐसा भ्रम फैलाकर “PDA बनाम सवर्ण” का एक नया एजेंडा चलाया जा रहा है।
👉 जबकि सच यह है कि ठाकुर अजय सिंह की ज़मीन सामने है, स्वतंत्र है और वो चुपचाप बैठे हैं।


📜 तथ्य 5: “कमजोर पर ज़ुल्म” और “संगठित रणनीति”

यह पूरा विवाद दर्शाता है कि किस प्रकार
✅ एक राजनैतिक दल
✅ उसके सहयोगी पदाधिकारी
✅ और स्थानीय भूमिपतियों का गठजोड़
मिलकर एक संवेदनशील प्रोफेसर को निशाना बना रहा है, क्योंकि वह अकेला है, निर्भीक है, और सत्ता के खिलाफ़ सच बोलने की हिम्मत रखता है।


🧾 निष्कर्ष:

जिस व्यक्ति की ज़मीन स्पष्ट रूप से सीमांकित है,
जिसने भू अभिलेखों के अनुसार अपने अधिकार का उपयोग किया है,
और जो इस रास्ते का कभी उपयोग नहीं करना चाहता था,
उसके ऊपर राजनीतिक षड्यंत्र और चरित्र हनन की चालें चली जा रही हैं।

👉 यह न केवल एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है,
बल्कि यह पूरे लोकतंत्र पर सवालिया निशान भी है।


“यदि सांसद राजीव राय वास्तव में सत्य के साथ होते, तो वे पहले अजय सिंह की ज़मीन से रास्ता निकालने की कोशिश करते, न कि एक प्रोफेसर की छोटी सी ज़मीन को निशाना बनाते।”


संविधान सबको समान अधिकार देता है — चाहे वो सांसद हो या एक साधारण शिक्षक।
अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाना सबसे बड़ा जनतंत्र है।


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