🛑 पकौड़ी पत्रकारिता का पर्दाफाश: चाय की चुस्की पर बिकती कलम की नाक!
✍️ Advocate Amaresh Yadav

📣 प्रस्तावना:
जब पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाती थी, तब सच बोलना उसका धर्म और जनहित उसका कर्म हुआ करता था।
लेकिन आज…
कुछ पत्रकार पकौड़ी की प्लेट और 10-20 लाख के चेक पर कलम गिरवी रख बैठे हैं।
घोसी से दिल्ली तक फैली यह “पकौड़ी पत्रकारिता” अब चाटुकारिता की सबसे घिनौनी मिसाल बन चुकी है।
🍵 “दानवीर सांसद” और पकौड़ीबाज कैमरा
सुनिए कहानी उस पत्रकार की,
जो हर महीने 10-20 लाख के “दान” की खबर फैलाता है —
लेकिन एक बार भी यह नहीं पूछता कि
“दान कहां गया?”,
“किस फंड से गया?”,
“FCRA का पालन हुआ या नहीं?”,
“RTI में क्या जवाब मिला?”
क्यों?
क्योंकि कैमरा पहले ही पकौड़ी के तेल में तल चुका होता है।
🤳 “नायक” की सेटिंग और “प्रोफेसर” की बेइज्जती
जिस पत्रकार को प्रोफेसर की ज़मीन, अभिलेख, कानून, और न्याय की चिंता नहीं —
वो हर दिन राजीव राय को नायक और प्रोफेसर को भूमाफिया दिखाने में जुटा है।
क्या ये पत्रकारिता है?
नहीं साहब,
ये है ठगहरा की ठग पत्रकारिता —
जहां ज़मीन पर कब्जा हो या लोकतंत्र पर,
कलम हमेशा पकौड़ी की प्लेट के नीचे दबी रहती है।
🤡 “पकौड़ी पत्रकार” और उसके 5 लक्षण:
- स्टूडियो में नहीं, सांसद के बरामदे में मिलता है।
- कभी RTI नहीं करता, सिर्फ Instagram लाइव करता है।
- लक्ष्य सत्य नहीं, सेटिंग होती है।
- पीड़ित की नहीं, प्रभु की सुनता है।
- घूस नहीं मांगता — सिर्फ चाय-पकौड़ी और गाड़ी का डीज़ल।
🧂 “पकौड़ी पत्रकारिता” का असली मसाला
ये पत्रकारिता नहीं,
PR एजेंसी का शाखा केंद्र है —
जहां “पैसे देकर खबर बनवाई जाती है”,
और “झूठ को इतना दोहराया जाता है कि सच दब जाए।”
📜 निष्कर्ष:
“पकौड़ी पत्रकारिता” सिर्फ एक मज़ाक नहीं है —
ये लोकतंत्र का अपमान है।
ये सत्ता का दलाल है।
ये वही लोग हैं,
जो पहले नायक की मूर्ति बनाते हैं,
और फिर जनता को उसमें “भगवान” देखने के लिए मजबूर करते हैं।
लेकिन हम खामोश नहीं बैठेंगे।
प्रोफेसर अनिल कुमार यादव की लड़ाई सिर्फ ज़मीन की नहीं है —
यह लड़ाई है झूठी पत्रकारिता, चाटुकार कलम और सत्ता की सेटिंग के खिलाफ।
✍️
अधिवक्ता अमरेष यादव
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
अमरेष यादव
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