— “बिजली मंत्री की चुप्पी: जातीय रिश्ता भारी पड़ा जनहित पर?”
✍️ लेखक: अमरेष यादव, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट


उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्री ए.के. शर्मा, जिनका प्रशासनिक रुतबा गुजरात मॉडल के दौर से चला आ रहा है, और जो प्रधानमंत्री मोदी के विश्वासपात्र माने जाते हैं — आजकल मऊ की ज़मीन की राजनीति पर गहरी चुप्पी साधे हुए हैं।

यह वही ए.के. शर्मा हैं जिनके सिर पर बिजली मंत्रालय की ज़िम्मेदारी है, लेकिन बिजली आती कब है, इस पर जवाब नहीं। जनता जल रही है, ट्रांसफार्मर धू-धू कर जल रहे हैं, लेकिन मंत्री जी चुप हैं।

अब सवाल ये है कि एक ऐसे वरिष्ठ और ताक़तवर मंत्री की चुप्पी का कारण क्या हो सकता है?

🧩 तथ्य 1: सजातीय संबंध — राजीव राय से अनिल यादव के ज़मीन विवाद पर चुप्पी क्यों?

मऊ जिले के चर्चित ज़मीन विवाद में एक तरफ़ हैं अनिल यादव, और दूसरी तरफ़ हैं राजीव राय, समाजवादी पार्टी के लोकसभा सदस्य और मुलायमवादी खेमे के पुराने चेहरे।
दिलचस्प बात ये है कि मंत्री ए.के. शर्मा भी मऊ जिले से ही आते हैं और राजीव राय के सजातीय हैं — यानी एक ही “ऊँची” वैश्य बिरादरी से।

अब सवाल उठता है —

क्या मंत्री जी की चुप्पी इसलिए है कि सजातीय भाई पर टिप्पणी करना “नीचता” मानी जाती है?
क्या सत्ता के रसूखदार मंत्री भी अपने जातीय दायरे में घिरकर जनहित से मुँह मोड़ सकते हैं?

कहां गया वो ‘विकासवाद’ जो जात-पात से ऊपर उठने की बात करता था?


तथ्य 2: ऊर्जा मंत्री लेकिन ज़मीन पर ‘ब्लैकआउट’ क्यों?

एक तरफ़ पूरे उत्तर प्रदेश में बिजली व्यवस्था चरमराई हुई है — कटौती, ओवरलोडिंग और जनता की नाराज़गी चरम पर है। दूसरी ओर, मऊ के जमीन विवाद में सत्ताधारी मंत्री की चुप्पी, और विपक्ष के राजीव राय की सक्रियता — दोनों ही जनहित के बजाय निजी हितों और जातीय समीकरणों की तरफ़ इशारा करते हैं।

अगर मंत्री जी वास्तव में ‘सुशासन’ और ‘गुड गवर्नेंस’ के मॉडल हैं, तो उन्हें राजीव राय और अनिल यादव के बीच ज़मीन विवाद पर निष्पक्ष बयान देना चाहिए था।

लेकिन अफ़सोस! जातीय चश्मे ने उनके राजनीतिक विवेक को ढक लिया है।


🧨 तर्क 3: ये चुप्पी केवल चुप्पी नहीं है — ये सहमति है!

जब ज़मीन के काग़ज़ सही हों, जब स्थानीय प्रशासन बार-बार कह चुका हो कि अनिल यादव के पक्ष में रजिस्ट्री है, तो एक सांसद द्वारा खुलेआम मीडिया में अपमानजनक बातें करना और उसे राजनीतिक युद्ध बना देना — क्या ये लोकतंत्र की मर्यादा है?

और जब सत्ता के मंत्री, जो मऊ से ही आते हैं, इस पूरे विवाद पर कुछ नहीं बोलते —

क्या यह इस अन्याय पर उनकी सहमति नहीं मानी जानी चाहिए?


🔥 निष्कर्ष — जाति की राजनीति की चीरफाड़ ज़रूरी है!

श्री ए.के. शर्मा जी को यह याद रखना चाहिए कि मंत्री का धर्म सिर्फ़ मंत्रालय चलाना नहीं, बल्कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना भी होता है।
उनकी यह चुप्पी दर्शाती है कि विकास की बातें सिर्फ़ भाषणों तक सीमित हैं, असल में जब सवाल जाति बनाम न्याय का होता है — तो ये बड़े-बड़े मंत्री भी चुप हो जाते हैं।

जनता पूछेगी:

क्या ए.के. शर्मा जी मंत्री हैं या सजातीय वकील?


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