सुप्रीम कोर्ट का फैसला और आवारा कुत्ते : संवैधानिक संतुलन का नमूना
✍️ अधिवक्ता अमरेष यादव, सर्वोच्च न्यायालय

सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय केवल आवारा कुत्तों के प्रबंधन का आदेश भर नहीं है। यह संविधानिक मूल्यों, विधिक ढाँचे और न्यायिक विवेक का पुनर्पुष्टिकरण है। यह निर्णय बताता है कि न्यायालय का दायित्व केवल विवाद निपटाना नहीं, बल्कि टकराते अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करना भी है—एक ओर नागरिकों का सुरक्षित जीवन का अधिकार, दूसरी ओर पशुओं के प्रति मानवीय व्यवहार का दायित्व।
1. मौलिक अधिकारों का संतुलन – अनुच्छेद 21
संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण करता है। भारतीय न्यायशास्त्र ने इस अधिकार का विस्तार पशुओं तक भी किया है, यह मानते हुए कि वे भी संवेदनशील प्राणी हैं और गरिमा के पात्र हैं।
लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब नागरिकों की सुरक्षा—विशेषकर बच्चों और बुज़ुर्गों की—आवारा कुत्तों के हमलों से प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस टकराव को किसी एक पक्ष के पक्ष में झुकाकर नहीं, बल्कि मध्यमार्ग अपनाकर सुलझाया है, ताकि दोनों के अधिकार संतुलित रहें।
2. वैधानिक आधार : पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस क्षेत्र का विधिक ढाँचा पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 (ABC Rules) है, जो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए हैं। इन नियमों में यह प्रावधान है :
- आवारा कुत्तों की नसबंदी की जाएगी,
- टीकाकरण अनिवार्य होगा,
- और कुत्तों को उसी क्षेत्र में पुनः छोड़ा जाएगा।
पूर्व में दिया गया आदेश, जो नसबंदी/टीकाकरण के बाद कुत्तों को छोड़ने पर रोक लगाता था, इन नियमों के विपरीत पाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने विधायी और वैज्ञानिक विमर्श से बने नियमों को ही सर्वोपरि मानते हुए इन्हें लागू करने का निर्देश दिया।
3. अनुपातिकता और व्यावहारिक प्रशासन
संवैधानिक कानून में अनुपातिकता का सिद्धांत अनिवार्य है—राज्य को ऐसा उपाय अपनाना चाहिए जो आवश्यक, संतुलित और व्यवहारिक हो।
लाखों कुत्तों को स्थायी रूप से शेल्टर में रखना न प्रशासनिक रूप से संभव है, न आर्थिक रूप से। सुप्रीम कोर्ट ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया और कहा कि ABC Rules ही व्यावहारिक और संवैधानिक समाधान हैं।
4. भोजन पर नियमन
कुत्तों को भोजन कराना करुणा का कार्य है, किंतु अनियंत्रित भोजन सार्वजनिक जीवन में असुविधा और हमलों का कारण बनता है। न्यायालय ने निर्देश दिया है कि सार्वजनिक स्थलों पर भोजन कराना प्रतिबंधित होगा और नगरपालिकाएँ निर्धारित फीडिंग ज़ोन स्थापित करेंगी। यह करुणा और अनुशासन का संतुलन है।
5. राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता
सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न राज्यों और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को समेकित कर पूरे देश के लिए एक समान नीति लागू की है। इससे :
- कानूनी एकरूपता सुनिश्चित होगी,
- प्रशासनिक स्पष्टता बनी रहेगी, और
- स्थानीय निकाय जिम्मेदारी से बच नहीं पाएँगे।
6. सहभागी न्याय और जवाबदेही
न्यायालय ने एनजीओ और व्यक्तियों को भागीदारी का अधिकार दिया, पर साथ ही लागत और जवाबदेही की शर्त भी जोड़ी। यह सुनिश्चित करता है कि केवल भावनात्मक दावे नहीं, बल्कि जिम्मेदार हस्तक्षेप हो।
साथ ही, नगरपालिकाओं पर अब यह दायित्व है कि वे संसाधन (डॉग पाउंड, केज, कर्मचारी) बढ़ाएँ और अनुपालन रिपोर्ट न्यायालय को सौंपें। यह सहभागी और जवाबदेह न्याय का आदर्श मॉडल है।
7. आक्रामक और रेबीज़ पीड़ित कुत्ते
न्यायालय ने यह अपवाद स्पष्ट किया है कि आक्रामक या रेबीज़-ग्रस्त कुत्तों को सीधे सड़क पर नहीं छोड़ा जाएगा। उन्हें अलग रखकर इलाज और देखभाल की जाएगी। यह नागरिकों की सुरक्षा और पशुओं के अधिकार—दोनों की रक्षा करता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि संविधानिक मूल्य व्यवहारिक शासन में कैसे रूपांतरित होते हैं। यह नागरिकों के सुरक्षित जीवन के अधिकार, पशुओं के गरिमा के अधिकार, और राज्य के प्रशासनिक दायित्व—तीनों को एक साथ संतुलित करता है।
अब असली परीक्षा कार्यान्वयन की है। नगरपालिकाओं को अपनी भूमिका गंभीरता से निभानी होगी, एनजीओ को जिम्मेदारी से जुड़ना होगा और नागरिकों को अनुशासित करुणा दिखानी होगी। तभी यह न्यायालयीन संतुलन हमारी सड़कों पर भी वास्तविकता बन पाएगा।
अमरेष यादव
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