सीमा पार कानूनी सहयोग पर रोक : बार काउंसिल ऑफ इंडिया की नई अधिसूचना का विधिक विश्लेषण

लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव

21 अक्टूबर 2025 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भारतीय एवं विदेशी विधि फर्मों के बीच होने वाले अनधिकृत सहयोग (unauthorised collaborations) पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए नई अधिसूचना जारी की। इससे पहले की 5 अगस्त 2025 की प्रेस विज्ञप्ति—जिसमें सीधे तौर पर Dentons Link Legal और CMS IndusLaw का नाम लिया गया था—को BCI ने दिल्ली उच्च न्यायालय (Atul Sharma v. Bar Council of India & another) में कार्यवाही के दौरान वापस ले लिया था और संशोधित अधिसूचना लाने का आश्वासन दिया था।

नई अधिसूचना का स्वर अपेक्षाकृत संतुलित है, परंतु यह स्पष्ट संदेश देती है कि BCI भारतीय कानूनी पेशे पर किसी भी प्रकार की सीमा पार अव्यवस्थित घुसपैठ को रोकने के लिए अपनी नियामक शक्ति (regulatory authority) को और सख्ती से लागू करेगा।


केवल स्पष्टीकरण, दोषसिद्धि नहीं

BCI ने यह स्पष्ट किया कि न तो अगस्त की और न ही अक्टूबर की अधिसूचना को किसी भी फर्म की दोषसिद्धि के रूप में पढ़ा जाए। ये केवल यह दर्शाती हैं कि कुछ फर्मों को शो-कॉज़ नोटिस जारी किए गए हैं और मौजूदा नियम-कानून की स्थिति समझाई गई है।

साथ ही अधिवक्ताओं और फर्मों को यह चेतावनी दी गई है कि वे अपने वेबसाइट, प्रचार सामग्री और मीडिया कंटेंट का तुरंत स्व-परीक्षण (self-audit) करें और किसी भी प्रकार की भ्रामक जानकारी हटा दें।


स्विस वेरेन (Swiss Verein) और “ग्लोबल ब्रांडिंग” पर रोक

कई भारतीय व विदेशी फर्में स्विस वेरेन, रणनीतिक गठजोड़ (strategic alliances) और संयुक्त ब्रांडिंग के माध्यम से स्वयं को एक “वैश्विक एकीकृत मंच (global platform)” के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं।

BCI का मानना है कि यह ग्राहकों को गुमराह कर सकता है। भारतीय कानून के तहत ऐसा केवल तभी संभव है जब फर्में पंजीकरण (registration), खुलासा (disclosure) और आचार संहिता (ethical compliance) का पूर्ण पालन करें, जैसा कि Bar Council of India Rules for Registration and Regulation of Foreign Lawyers and Foreign Law Firms in India, 2023 (संशोधित 2025) में प्रावधान है।


न्यायिक आधार: A.K. Balaji मामला

इस संदर्भ में BCI ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय Bar Council of India v. A.K. Balaji & Ors. (2018) पर भरोसा किया। न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि विदेशी विधि फर्में अप्रत्यक्ष रूप से वह कार्य नहीं कर सकतीं, जो उन्हें प्रत्यक्ष रूप से निषिद्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय ने “कानून का अभ्यास (practice of law)” की व्यापक परिभाषा दी थी—जिसमें केवल अदालत में बहस ही नहीं, बल्कि कानूनी परामर्श, अनुबंध-प्रारूपण और वार्ता (negotiation) भी शामिल हैं। इसका अर्थ यह है कि गैर-मुकदमेबाजी क्षेत्र में भी विदेशी सहयोग पर एडवोकेट्स एक्ट, 1961 लागू होता है।


मध्यस्थता (Arbitration) में विदेशी वकीलों की सीमित भूमिका

BCI ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय-सीटेड मध्यस्थताओं (Indian-seated arbitrations) में विदेशी वकीलों की भूमिका बहुत सीमित है।

Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 19(3) के अनुसार, वे ऐसे मामलों में गवाही पर शपथ के साथ जिरह (cross-examination) या पेशी (appearance) नहीं कर सकते।
उनकी भूमिका केवल विदेशी कानून से जुड़े विशिष्ट प्रश्नों तक सीमित है, वह भी तभी जब वे शपथ पर आधारित साक्ष्य का हिस्सा न हों।


अनुशासनात्मक कार्रवाई और Rule 36

BCI ने सख्त चेतावनी दी है कि—

  • जो फर्में दोषी पाई जाएंगी, उन्हें अपने संगठन ढांचे और विदेशी संबद्धताओं का पूरा खुलासा करना होगा।
  • अनुपालन न करने पर पेशेवर दुराचरण (professional misconduct) की कार्यवाही हो सकती है—जिसमें फटकार, निलंबन या पंजीकरण रद्दीकरण शामिल है।
  • विदेशी नाम या एकीकृत ब्रांडिंग का प्रयोग बिना पंजीकरण किए गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।

इसके अतिरिक्त, BCI ने Standards of Professional Conduct and Etiquette के Rule 36 को पुनः दोहराया, जो विज्ञापन और प्रचार पर रोक लगाता है। “ग्लोबल प्रैक्टिस” का संकेत देने वाली कोई भी ब्रांडिंग solicitation मानी जाएगी और दुराचरण का आधार बनेगी।


उदारीकरण बनाम संरक्षण

BCI का दृष्टिकोण दोहरी रणनीति पर आधारित है:

  • एक ओर, विदेशी वकीलों को भारत में विदेशी एवं अंतरराष्ट्रीय कानून का अभ्यास करने की अनुमति दी गई है।
  • दूसरी ओर, भारतीय वकालत की स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करते हुए, BCI किसी भी प्रकार की अनियंत्रित विदेशी घुसपैठ पर रोक लगाने के लिए प्रतिबद्ध है।

निष्कर्ष

21 अक्टूबर 2025 की अधिसूचना महज़ पिछली प्रेस विज्ञप्ति का प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि यह नियामक अनुशासन का पुनः प्रतिपादन है।

  • A.K. Balaji सिद्धांत को पुनः लागू किया गया,
  • मध्यस्थता में विदेशी वकीलों की सीमाएँ तय की गईं,
  • और अनुपालन न करने पर कठोर दंड की चेतावनी दी गई।

संदेश साफ़ है:
👉 भारतीय फर्में—अपने गठबंधनों और ब्रांडिंग की समीक्षा करें।
👉 विदेशी फर्में—पंजीकरण और नियमों का पालन करें।

BCI का रुख यह है कि—वैश्विक सहयोग संभव है, परंतु केवल भारतीय कानून और नैतिक संहिता की सीमा के भीतर।


Amaresh Yadav 🇮🇳

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