क्या आरक्षण को क़ैद करना संवैधानिक है?

कानूनी लेख (LEGAL ARTICLE)
“UPPCS परीक्षाओं में 2022 के बाद आरक्षण का योजनाबद्ध ध्वंस: ओवरलैपिंग समाप्त कर प्रतिनिधित्व को नष्ट करने की संवैधानिक समीक्षा”
— अधिवक्ता अमरेष यादव
भूमिका
भारत में आरक्षण केवल वर्ग-हित नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसर का संवैधानिक साधन है। आरक्षण प्रतिस्पर्धा नहीं कम करता, बल्कि प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
किन्तु वर्ष 2022 के बाद उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) ने जिस प्रकार परीक्षा-प्रक्रिया में परिवर्तन किए हैं, वे केवल प्रशासनिक सुधार नहीं—बल्कि आरक्षण व्यवस्था के सार्थक क्रियान्वयन का विधिक विघटन प्रतीत होते हैं।
नई प्रक्रिया ने ऐसा ढांचा निर्मित कर दिया है जिसमें 90% बहुजन आबादी को 40% अवसरों में सीमित कर दिया गया है, जबकि 10–15% सामाजिक प्रभुत्व वाले वर्गों को 90% अवसरों तक अबाध पहुंच प्रदान कर दी गई है।
यह न केवल संवैधानिक व्यवस्था के विरुद्ध है, बल्कि न्याय के बुनियादी सिद्धांतों को भी चुनौती देता है।
1. ओवरलैपिंग सिद्धांत: जिसे UPPSC ने उलट कर आरक्षण का आधार समाप्त कर दिया
सर्वोच्च न्यायालय ने इंद्रा साहनी, एम. नागराज, और जर्नैल सिंह के फैसलों में स्पष्ट किया है कि:
“यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी सामान्य वर्ग (GEN) के कटऑफ से अधिक अंक लाता है,
तो उसे GEN सीट मानी जाएगी। वह आरक्षित कोटा नहीं भरेगा।”
इससे दो बातें सुनिश्चित होती हैं—
- सामान्य सीटें वास्तव में सभी के लिए खुली रहती हैं।
- आरक्षित वर्ग की पूर्ण आरक्षित सीटें सुरक्षित रहती हैं।
UPPSC ने 2022 से ओवरलैपिंग पूरी तरह समाप्त कर दी है।
परिणाम —
- OBC/SC/ST/EWS अभ्यर्थी GEN सीटों में प्रवेश नहीं कर पाते
- GEN सीटें वस्तुतः सवर्ण-आरक्षित बन जाती हैं
- आरक्षण का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है
यह संवैधानिक दर्शन का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।
2. कटऑफ के आंकड़े: षड्यंत्र का सबसे स्पष्ट प्रमाण
UPPCS Pre 2022
GEN – 111
OBC – 114
EWS – 114
UPPCS Pre 2023
GEN – 125
OBC – 128
EWS – 129
जब आरक्षित वर्ग का कटऑफ सामान्य वर्ग से ऊपर चला जाए—
तो यह योग्यता का प्रमाण नहीं, बल्कि ओवरलैपिंग हटाकर आरक्षित वर्ग को उनके कोटे में कैद करने का षड्यंत्र होता है।
सामान्य रूप से सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों का कटऑफ ऊँचा होना संभव नहीं—
यह “मैनिपुलेटेड मेरिट” (Manipulated Merit) का स्पष्ट संकेत है।
3. 15 गुना नियम का उल्लंघन: आयोग की स्वयं की नीति का अपमान
21 अक्टूबर 2021 को आयोग ने शुद्धिपत्र जारी किया:
“प्री परीक्षा में कुल रिक्तियों के 15 गुना अभ्यर्थियों को पास किया जाएगा।”
लेकिन UPPCS 2025 में:
- सीटें: 920
- प्री पास: 11,727 (यानी लगभग 12 गुना)
यह सीधा-सीधा आयोग की अधिसूचना का उल्लंघन है।
कम अभ्यर्थियों को पास करने से—
- OBC/SC/ST की भारी संख्या पहले ही चरण में कट जाती है
- अंतिम चरणों में GEN/EWS वर्ग का अनुपात कृत्रिम रूप से बढ़ जाता है
यानी, यह संरचनात्मक बहिष्कार (Structural Exclusion) है, न कि परीक्षा सुधार।
4. मेंस और इंटरव्यू में गैर-ओवरलैपिंग का दुष्परिणाम: प्रतिनिधित्व का ध्वंस
यदि कुल सीटें = 100 हों—
संवैधानिक विभाजन:
- GEN – 40
- OBC – 27
- EWS – 10
- SC – 21
- ST – 2
लेकिन मेंस में पहुंचे अभ्यर्थी:
(ओवरलैपिंग न होने का प्रभाव)
- GEN – 600
- OBC – 405
- SC – 315
- ST – 30
यह दर्शाता है कि:
“आरक्षित वर्ग को उनके कोटे में ही सीमित कर दिया गया है,
GEN सीटों में उनकी कोई भागीदारी नहीं रहने दी गई।”
यह आरक्षण के लक्ष्य—उचित प्रतिनिधित्व (Adequate Representation)—का पूर्ण विघटन है।
5. इंटरव्यू चरण: जनसंख्या अनुपात का पूर्ण उलटाव
इंटरव्यू में कुल 300 अभ्यर्थी बुलाए गए:
- GEN – 120
- OBC – 81
- SC – 63
- ST – 6
- EWS – 30
अर्थात—
- 150 सवर्ण वर्ग (GEN + EWS)
- 150 सभी बहुजन वर्ग (OBC + SC + ST)
जबकि आबादी:
- सवर्ण: 10–15%
- बहुजन: 85–90%
प्रतिनिधित्व पूर्णतः उलट गया।
ऐसा केवल तब संभव है जब प्रक्रिया ही सामाजिक अनुपात को तोड़ने के लिए डिजाइन की गई हो।
6. अंतिम चयन: सिस्टम की पक्षपातपूर्ण इंजीनियरिंग
40 GEN सीटों के लिए प्रतिस्पर्धी:
- 120 सवर्ण (GEN)
- +20 EWS = 140 सवर्ण
- केवल 100 OBC/SC/ST
सबसे संभावित परिणाम—
- 40 GEN सीटों में से कम से कम 28 सीटें सवर्णों को मिलेंगी
- EWS की 10 में लगभग सभी सवर्णों द्वारा भरी जाएंगी
कुल:
- सवर्ण: 38 सीटें
- बहुजन: 62 सीटें
जबकि जनसंख्या अनुपात इसके उलट है।
यह “समान अवसर” नहीं—
समान अवसर का मरणोपरांत संस्कार है।
7. संवैधानिक उल्लंघन: एक विधिक विश्लेषण
UPPSC की यह प्रक्रिया निम्न संवैधानिक व्यवस्थाओं का सीधा अपमान है—
धारा 14 — समानता का अधिकार
प्रक्रिया की मनमानी और कृत्रिम असमानता।
धारा 16(1) — समान अवसर का अधिकार
GEN सीटें अब वास्तविक रूप से “ओपन” नहीं रहीं।
धारा 16(4) — अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का समाधान
नई व्यवस्था अपर्याप्त प्रतिनिधित्व बढ़ाती है, घटाती नहीं।
धारा 335 — प्रशासनिक दक्षता
दक्षता मेरिट से नहीं बढ़ती—प्रतिनिधित्व से बढ़ती है।
राज्य का दायित्व (अनुच्छेद 46)
वंचित वर्गों की सुरक्षा के बजाय आयोग द्वारा सिस्टमेटिक एक्सक्लूजन किया जा रहा है।
यह पूरा ढांचा Ultra Vires (अवैध) है।
8. निष्कर्ष: यह अब परीक्षा घोटाला नहीं—बल्कि एक संवैधानिक संकट है
UPPSC द्वारा 2022 के बाद लागू मॉडल:
- आरक्षण प्रणाली का मशीनीकरण करके विनाश
- प्रतिनिधित्व को कुचलने की संस्थागत पहल
- जाति-विशेष के लिए “मेरिट” की आड़ में वैधानिक गलियारा
- सामाजिक न्याय की आत्मा का अपमान
यह प्रशासनिक निर्णय नहीं—
यह एक संवैधानिक अपराध है, जिसके विरुद्ध न्यायिक समीक्षा अनिवार्य है।
Adv Amaresh Yadav

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