🟥 कोडीन कफ सिरप कांड: SIT की जांच पर सवाल और प्रशासनिक हितों के टकराव का बड़ा मुद्दा
Advocate Amaresh Yadav

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी कर अवैध कोडीनयुक्त कफ सिरप की तस्करी और अवैध बिक्री पर ‘विशेष जांच दल’ (SIT) गठित की है। आदेश में साफ स्वीकार किया गया है कि पिछले दिनों में कफ सिरप की अंतर्राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अवैध तस्करी के कई मामले सामने आए हैं। यह स्वीकारोक्ति दिखाती है कि यह कोई स्थानीय अपराध नहीं, बल्कि एक संगठित नशीला कारोबार है जिसमें भारी आर्थिक लाभ कमाया जा रहा है।
लेकिन इस आदेश में एक बेहद गंभीर समस्या है—SIT के गठन में ही हितों का टकराव (Conflict of Interest) मौजूद है।
🟥 संगठित अपराध के संकेत
सरकारी आदेश स्वयं कहता है कि:
- कई जनपद प्रभावित हैं
- अंतर्राज्यीय और अंतरराष्ट्रीय तस्करी की आशंका है
- अवैध आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा रहा है
- पुलिस खुफिया विभाग ने प्रथम रिपोर्ट दी है
इसका सीधा अर्थ है— यह कोई छोटा मामला नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित, पेशेवर और अंतरराष्ट्रीय नशा-कार्टेल का हिस्सा है।
🟥 असली सवाल: तस्करी कैसे संभव हुई?
भारत में कोडीन सिरप की बिक्री:
- लाइसेंस प्राप्त फार्मासिस्ट,
- थोक विक्रेता,
- औषधि नियंत्रण विभाग,
- शिपमेंट निगरानी एजेंसियों
के नियंत्रण के बिना संभव ही नहीं है।
इसलिए यह पूरा अपराध सिर्फ सड़क स्तर की बिक्री नहीं बल्कि नियामक लापरवाही या मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकता।
🟥 सबसे महत्वपूर्ण बिंदु: SIT में वही विभाग शामिल!
SIT के तीसरे सदस्य के रूप में औषधि प्रशासन / Food Safety & Drug Administration के अधिकारी को सदस्य बनाया गया है—जबकि मुख्य आरोप उसी नियंत्रक तंत्र की संभावित विफलता पर है।
यानी जिस विभाग पर निगरानी विफलता या संभावित मिलीभगत की आशंका है, वही विभाग जांच का सदस्य भी है!
यह नैतिक, कानूनी, और प्रशासनिक रूप से अस्वीकार्य स्थिति है।

🟥 हितों का टकराव (Conflict of Interest)
नैतिक नियम साफ कहते हैं— “No one should be judge in his own cause.”
जिस विभाग की कार्यवाही, लाइसेंसिंग, निरीक्षण, दवाओं की निगरानी और NDPS अनुपालन सीधे जांच के दायरे में आते हैं, उसे जांच करने का अधिकार देना जांच की निष्पक्षता को संदिग्ध बनाता है।
यह स्थिति:
- साक्ष्य प्रभावित कर सकती है,
- विभागीय जिम्मेदारी को बचा सकती है,
- वास्तविक दोषियों की पहचान रोक सकती है।
🟥 क्या यह जांच को सीमित करने की कोशिश है?
जो आदेश एक ओर अंतरराष्ट्रीय गिरोहों की बात करता है वही दूसरी ओर उसी विभाग को जांच में सम्मिलित कर देता है, जिसके खिलाफ जांच हो सकती है। यह पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सीधा प्रश्नचिह्न लगाता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने केवल ‘सार्वजनिक प्रतिक्रिया प्रबंधन’ के लिए SIT बनाई है, लेकिन वास्तविक जवाबदेही या कठोर कार्रवाई का इरादा कमजोर दिखता है।
🟥 मांग: स्वतंत्र जांच एजेंसी शामिल हो
इस मामले में उचित होता—
- NCB,
- DRI,
- ED (money laundering),
- Narcotics Cell,
- या किसी सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी
को जांच में शामिल किया जाता।
क्योंकि मामला केवल दवाओं की चोरी नहीं बल्कि:
- NDPS Act,
- अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला,
- मनी लॉन्ड्रिंग,
- संगठित अपराध
इन सब का मामला है।
🟥 अंतिम सवाल
क्या यह SIT सिर्फ औपचारिकता है?
क्या सरकार नियामक एजेंसियों की सच्ची भूमिका उजागर नहीं करना चाहती?
क्या यह जांच उसी विभाग के हाथ में देकर दफन करने की तैयारी है?
यदि सरकार गंभीर है, तो उसे तुरंत Independent Investigation Mechanism बनाना चाहिए, अन्यथा यह आदेश केवल कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगा।
✳ निष्कर्ष
कोडीन सिरप तस्करी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट, NDPS अपराध और संगठित आपराधिक नेटवर्क का मिश्रण है। इसकी जांच निष्पक्ष नहीं हुई तो इसका परिणाम न सिर्फ न्याय के लिए बल्कि समाज के लिए भी बेहद गंभीर होगा।
सरकार को SIT में से औषधि प्रशासन के अधिकारी को हटाकर स्वतंत्र एजेंसी को शामिल करना चाहिए—यह न्यूनतम अपेक्षा है।
Advocate Amaresh Yadav
Supreme Court of India
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