ब्राह्मणवादी मीडिया प्रोपेगेंडा बनाम यादव : झूठ, डर और सत्ता की भाषा
— Advocate Amaresh Yadav (Supreme Court of India)

यह खबर नहीं थी, यह हमला था
“86 में 56 यादव SDM”—
यह कोई आँकड़ा नहीं था, यह एक डर पैदा करने वाला नारा था।
न दस्तावेज़, न अधिसूचना, न RTI—फिर भी प्राइम टाइम पर हथौड़े की तरह मारा गया।
यादव को प्रशासन का खलनायक बनाने की कोशिश,
और बहुजन उन्नति को ‘कास्ट कैप्चर’ कहने की चाल—
यही है ब्राह्मणवादी मीडिया प्रोपेगेंडा।
प्राइम टाइम = प्रूफ टाइम नहीं
टीवी स्टूडियो में माइक पकड़ते ही
संविधान स्थगित नहीं हो जाता।
अगर कोई एंकर/विश्लेषक—
चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो—
बिना प्राथमिक स्रोत के सटीक संख्या उछाल देता है,
तो वह पत्रकारिता नहीं, प्रचार है।
RTI बाद में आई—और झूठ ढह गया।
“56 यादव” का आंकड़ा फर्जी निकला।
फिर माफी कहाँ है?
सुधार कहाँ है?
या झूठ का काम पूरा हो चुका था?
यादव क्यों?
क्यों नहीं “86 में 60 सवर्ण SDM”?
क्यों नहीं “मेरिट का जातीय इतिहास”?
क्योंकि:
- यादव दृश्य है
- यादव राजनीतिक रूप से मुखर है
- यादव सामाजिक संतुलन को चुनौती देता है
इसलिए उसे डर का चेहरा बनाया गया।
ब्राह्मणवादी नैरेटिव की फाइल
- बहुजन आगे बढ़े → पक्षपात
- सवर्ण आगे रहे → मेरिट
- आंकड़ा चाहिए → घड़ लो
- सवाल उठे → शोर बढ़ा दो
यही पैटर्न है।
यही प्राइम टाइम की कास्ट इंजीनियरिंग है।
मीडिया की जवाबदेही कहाँ है?
किसी भी सभ्य लोकतंत्र में:
- झूठी संख्या = तुरंत सुधार
- समुदाय को बदनाम करना = सार्वजनिक माफी
- संस्थान पर आरोप = दस्तावेज़ी प्रमाण
भारत में?
- TRP पहले
- सच बाद में
- और माफी? कभी नहीं
कुछ चर्चाओं में यह नैरेटिव प्रमुख आवाज़ों द्वारा दोहराया गया—
जिनमें जैसे नामों का आरोपों में उल्लेख हुआ।
यहाँ स्पष्ट कर दूँ: आरोप और प्रमाण अलग चीज़ हैं—
पर प्रभाव और जिम्मेदारी से कोई नहीं बचता।
संविधान बनाम स्टूडियो
संविधान कहता है:
- Article 14–16 = समान अवसर + ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई
स्टूडियो कहता है:
- “बहुत ज़्यादा हो गए”
प्रश्न यह नहीं कि यादव SDM क्यों बने—
प्रश्न यह है कि सदियों तक एक ही जाति SDM क्यों रही,
और तब यह सवाल क्यों नहीं उठा?
यह पत्रकारिता नहीं, सामाजिक उकसावा है
जब झूठे आंकड़े:
- समुदायों को आमने-सामने खड़ा करें
- संवैधानिक संस्थाओं को संदिग्ध बनाएं
- और सुधार के बिना दोहराए जाएँ
तो वह Free Speech नहीं,
Free Poison है।
अंतिम वार (Punchline)
अगर यादव का SDM बनना ‘कास्टिज़्म’ है,
तो सवर्णों का सदियों का राज क्या—ईश्वरीय लाइसेंस था?
संविधान ने वह लाइसेंस रद्द कर दिया है।
इसीलिए यह चीख है।
इसीलिए यह झूठ है।
और इसीलिए इसे बेनकाब करना ज़रूरी है।
✍️ Advocate Amaresh Yadav
Supreme Court of India

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