जब अमेरिका आता है, तब कश्मीर जलता है!
क्या हर दौरे से पहले जिहादी आतंकी हमले महज संयोग हैं?

लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट
प्रकाशन तिथि: 23 अप्रैल 2025
कश्मीर में खून, मीडिया में “धर्म” और सत्ता में चुप्पी!
22 अप्रैल 2025, पहलगाम – जैसे ही अमेरिका का एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि भारत पहुंचा, कश्मीर फिर जल उठा। पर्यटक मारे गए, सुरक्षा बलों पर हमले हुए, और एक बार फिर वही पुराना नारा मीडिया में गूंजा:
“धर्म पूछा गया, जाति नहीं!”
क्या यह वाकई आतंकवाद का विश्लेषण है, या फिर सत्ता और मीडिया के गठजोड़ का एक ख़तरनाक ऑपरेशन?
1. अमेरिकी दौरे और आतंकी हमलों की संदिग्ध ‘टाइमिंग’
- 2016: अमेरिका के रक्षा मंत्री आए – उरी हमला।
- 2019: ट्रंप की यात्रा – पुलवामा हमला।
- 2025: अमेरिकी राजनयिक का दौरा – पहलगाम हमला।
क्या यह सिर्फ संयोग है? या एक सोची-समझी योजना, जिससे भारत की आंतरिक अस्थिरता का प्रदर्शन हो?
2. ISI का खेल और सत्ता की चुप्पी
जब भी ISI कोई ‘ब्लैक ऑपरेशन’ करता है, भारतीय मीडिया उसे धार्मिक चश्मे से देखने लगता है।
हमले का उद्देश्य स्पष्ट है:
- अमेरिका को अस्थिर भारत दिखाना
- आंतरिक मतभेदों को उभारना
- भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करना
लेकिन शर्मनाक यह है कि हमारी मीडिया और सत्ता खुद उस नैरेटिव को आगे बढ़ाती है जो आतंकवादियों का हथियार बन चुका है।
3. “धर्म पूछा गया” – यह कोई सूचना नहीं, यह षड्यंत्र है
जब हर आतंकी घटना को धार्मिक फ्रेम में ढाला जाता है, तो असली मुद्दे छुप जाते हैं:
- सुरक्षा एजेंसियों की विफलता
- राजनीतिक जिम्मेदारी
- खुफिया इनपुट्स की अनदेखी
ध्यान भटकाने के लिए यही कहा जाता है:
“धर्म पूछा गया”
ताकि जनता असली दोषियों से सवाल न पूछे।
4. मीडिया का असली अपराध: आतंकवाद को प्राइम टाइम मसाला बनाना
आज मीडिया रिपोर्टिंग नहीं करता, वह ड्रामा रचता है।
- धर्म के नाम पर भावनाओं को भड़काना
- हमले की “टाइमिंग” को नजरअंदाज करना
- सत्ता की विफलताओं पर चुप रहना
यह वही अपराध है जो लोकतंत्र की हत्या की पहली सीढ़ी है।
5. अगर अब नहीं जागे, तो अगली गोली लोकतंत्र पर चलेगी
जब आतंकवादी गोलियाँ चलाते हैं, और मीडिया नैरेटिव सेट करता है,
तो सबसे बड़ा नुकसान जवाबदेही और सच्चाई का होता है।
यह सिर्फ कश्मीर की बात नहीं है – यह देश की आत्मा पर हमला है।
समापन: धर्म के नाम पर देशभक्ति का अपहरण मत होने दो!
- सवाल पूछो
- सुरक्षा तंत्र को जवाबदेह बनाओ
- ISI और उनके घरेलू एजेंटों की पहचान करो
- मीडिया की गुलामी से बाहर निकलो
वरना अगली बार भी हमला होगा… और मीडिया फिर कहेगा – “धर्म पूछा गया!”
लेखक परिचय:
अधिवक्ता अमरेष यादव सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और मीडिया की भूमिका पर तीखी और तथ्यपूर्ण टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं।
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