पहलगाम त्रासदी: सुप्रीम कोर्ट से अपील — दोषियों को कटघरे में खड़ा किया जाए

लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुआ नरसंहार एक सामान्य आतंकी हमला नहीं था। यह भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) पर किया गया खुला हमला था। निर्दोष नागरिकों का खून बहा, और सत्ता के गलियारों में प्रतीकात्मक नारे गूँजे — ज़िम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं।
आज मैं, एक नागरिक और एक अधिवक्ता के रूप में, सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करता हूं कि इस त्रासदी की गहन न्यायिक जांच हो और दोषियों को कठोरतम दंड दिया जाए। साथ ही देशवासियों के सामने कुछ बेहद जरूरी सवाल भी रखता हूं जिन्हें अब टाला नहीं जा सकता।
✍️ सुरक्षा चूक और खुफिया विफलता पर प्रश्न:
- जिस पहलगाम को ‘सुरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया गया था, वहां आतंकवादी इतने भीतर कैसे प्रवेश कर सके?
- खुफिया एजेंसियों को इस बड़े हमले के कोई संकेत क्यों नहीं मिले?
- क्या यह हमारे आंतरिक सुरक्षा ढांचे की गहरी विफलता नहीं है?
कृपया जवाब दें: सुरक्षा किसकी जिम्मेदारी थी और उसकी विफलता का परिणाम किसके सिर डाला जाएगा?
✍️ प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति: चुप्पी क्यों?
- जब देश मातम मना रहा था, तब सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति क्या दर्शाती है?
- क्या सर्वोच्च कार्यकारी पद की नैतिक जिम्मेदारी केवल चुनावी रैलियों तक सीमित हो गई है?
कृपया जवाब दें: संकट के समय नेतृत्व क्यों नदारद था?
✍️ सिंधु जल संधि निलंबन: वास्तविक कदम या प्रचार?
- सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा के पीछे ठोस रणनीति है या केवल भावनाओं से खेलने की साजिश?
- क्या भारत के पास आज की तारीख में तकनीकी और भौगोलिक साधन हैं कि वह पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोक सके?
कृपया जवाब दें: शहीदों के लहू के बदले, हमें खोखले नारे क्यों दिए जा रहे हैं?
✍️ स्थानीय प्रशासन और टूर ऑपरेटर्स की लापरवाही:
- क्यों बिना सरकारी अनुमति के पहलगाम में पर्यटकों की बुकिंग शुरू हुई?
- क्या सुरक्षा एजेंसियों ने खतरे के बावजूद आंख मूंदी रखी?
- क्या यह लापरवाही जानबूझकर की गई थी?
कृपया जवाब दें: भ्रष्टाचार और लापरवाही की कीमत आम नागरिक क्यों चुकाए?
✍️ धार्मिक पहचान पर हमले का सवाल:
- क्या सचमुच यात्रियों की धार्मिक पहचान पूछकर हिंदू यात्रियों को निशाना बनाया गया?
- अगर हाँ, तो क्या यह एक साधारण आतंकी हमला है या सुनियोजित सांप्रदायिक नरसंहार?
कृपया जवाब दें: क्या सरकार इस घृणित अपराध को सही नाम देने से भी डरती है?
✍️ मीडिया और सोशल मीडिया पर नियंत्रण का सवाल:
- हमले के बाद नफरत भड़काने वाले संदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुए — सरकार ने रोकने के क्या ठोस प्रयास किए?
- क्या सोशल मीडिया को सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए ही नियंत्रित किया जाएगा, सुरक्षा के लिए नहीं?
कृपया जवाब दें: देश की एकता से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनावी छवि है क्या?
न्यायिक अपील:
सर्वोच्च न्यायालय को इस त्रासदी पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और निम्नलिखित आदेश पारित करने चाहिए:
- स्वतंत्र उच्च स्तरीय न्यायिक जांच आयोग का गठन।
- जिम्मेदार अधिकारियों पर आपराधिक कार्रवाई।
- पीड़ित परिवारों के लिए विशेष पुनर्वास और क्षतिपूर्ति पैकेज।
- भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्त क्रियान्वयन।
- धार्मिक आधार पर निशाना बनाने के मामलों की अलग से आपराधिक श्रेणी बनाना।
समाप्ति:
भारत के नागरिकों ने इस देश को वोट देकर सरकार नहीं, बल्कि जिम्मेदार नेतृत्व सौंपा था। यदि सरकारें जनता की सुरक्षा नहीं कर सकतीं, तो संविधान के रक्षक — न्यायपालिका को आगे आना ही पड़ेगा।
आज पहलगाम से निकली चीख देश के हर कोने में गूंज रही है:
“हमें जवाब चाहिए, न्याय चाहिए, और सच्चा नेतृत्व चाहिए — अब!”
(लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट। मानवाधिकार और संवैधानिक जिम्मेदारियों के प्रखर पक्षधर।)
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