“सीजफायर करवाया ट्रंप ने – मोदी की विदेश नीति की खुली चीर-फाड़”
✍️ अधिवक्ता अमरेष यादव

‘शेर’ बनकर दहाड़ने वाले का विदेशी घुड़की पर मीठा मिमियाना
1971 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में धूल चटाकर, शिमला समझौते के ज़रिए ये स्पष्ट किया था –
“भारत और पाकिस्तान के सभी मुद्दे आपसी बातचीत से सुलझाए जाएंगे, किसी तीसरे पक्ष की कोई जगह नहीं!”
यह भारतीय संप्रभुता और रणनीतिक आत्मनिर्भरता की नींव थी।
लेकिन अब ज़रा सोचिए –
2025 में ट्रंप मंच से ऐलान करता है कि भारत-पाक युद्धविराम उसके कहने पर हुआ!
और हमारे प्रधानमंत्री चुपचाप ताली बजा रहे हैं!
यह सिर्फ कूटनीतिक शर्मिंदगी नहीं,
बल्कि भारत की विदेश नीति को अमेरिकी चप्पल तले रौंदने का आधिकारिक ऐलान है।
खंड 1: क्या अमेरिका अब हमारी थल सेना का नया कमांडर है?
मोदी सरकार की विदेश नीति अब फोटो खिंचवाओ, बयान दो, और वापस खिसको मॉडल बन चुकी है।
- मीडिया को युद्ध दिखाना है — तो फोटोशूट करवा दो।
- वोट चाहिए — तो सेना के नाम पर भावुक भाषण दे दो।
- लेकिन जैसे ही अमेरिका या कोई सुपरपावर आंख दिखाए —
रणनीति को तह कर के जेब में डाल लो।
भारत अब नीति नहीं बनाता, अमेरिका के ई-मेल पढ़ता है।
खंड 2: ‘डिप्लोमेसी’ का घूंघट डालकर दूल्हा अमेरिका के इशारे पर
ये वही प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में 56 भाषण दिए,
लेकिन एक बार भी अमेरिका की मध्यस्थता को ठोस शब्दों में नकारा नहीं।
हर बार ट्रंप हो या बाइडेन,
जब भी पाकिस्तान पर कार्रवाई का वक्त आता है,
मोदी सरकार ‘वॉशिंगटन रिट्रीट’ मोड में चली जाती है।
क्या अब हमारी विदेश नीति की रीढ़ व्हाइट हाउस के दरवाज़े पर टिकती है?
खंड 3: शिमला समझौता टूटा, और भारत ने कुछ कहा भी नहीं?
ट्रंप का ऐलान,
“मैंने भारत और पाकिस्तान में सीजफायर करवा दिया”,
शिमला समझौते की सीधी धज्जियां उड़ाने वाला बयान है।
अगर आज इंदिरा गांधी जिंदा होतीं,
तो ट्रंप को दो टूक जवाब देतीं और दुनिया को याद दिलातीं कि
भारत एक परिपक्व शक्ति है, किसी की कठपुतली नहीं।
लेकिन अब…
देश का प्रधानमंत्री अमेरिका के कहने पर शांति-अभिनय कर रहा है,
मानो भारत ने नहीं, किसी छोटे राज्य ने लड़ाई छेड़ी हो और अमेरिका ने निबटा दिया हो।
निष्कर्ष: विदेश नीति नहीं, विदेशी कृपा पर चलती सरकार
मोदी सरकार का अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक झूठ यही रहा है –
“भारत अब वैश्विक महाशक्ति है।”
सच्चाई ये है –
भारत अब “ग्लोबल डिप्लोमेटिक मिमियाहट” की मिसाल बनता जा रहा है।
- न चीन से आँख मिलाई,
- न पाकिस्तान को सबक सिखाया,
- और अब अमेरिका की उंगली पकड़ कर सीजफायर को उपलब्धि बताया जा रहा है!
कब तक झूठे राष्ट्रवाद के सिंदूर से जनता को बहकाया जाएगा?
भारत को फिर इंदिरा चाहिए –
जो दुनिया को बता सके कि भारत किसी की मध्यस्थता नहीं,
बल्कि अपनी नीति खुद तय करता है।
– अधिवक्ता अमरेष यादव
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