BN राउ संविधान सभा के सदस्य नहीं थे — तो क्या उन्हें “संविधान निर्माता” कहना एक ऐतिहासिक धोखा नहीं है?
– अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट

आज जब भारत का संविधान बार-बार जातिगत नज़रिए से देखा और घसीटा जा रहा है, तब यह सवाल और ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि “संविधान निर्माता” कौन था, और किसे कहा जा रहा है — क्यों और कैसे?”
ब्राह्मणवादी लॉबी द्वारा इन दिनों B.N. राउ को “वास्तविक संविधान निर्माता” कहने की कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया से लेकर कुछ लेखों और भाषणों तक एक सोची-समझी रणनीति के तहत उन्हें “unsung hero” बना कर पेश किया जा रहा है।
लेकिन सवाल सीधा है:
क्या बी. एन. राउ संविधान सभा के सदस्य थे?
उत्तर: नहीं।
तथ्य क्या कहते हैं?
- बी.एन. राउ कभी भी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे।
- संविधान सभा में कुल 299 सदस्य थे, जिनका चुनाव ब्रिटिश भारतीय प्रांतों और देशी रियासतों से हुआ था।
- इनमें R.V. Dhulekar, Jawaharlal Nehru, Sardar Patel, K.T. Shah, Hansa Mehta, Rajendra Prasad, और Dr. B.R. Ambedkar जैसे लोग शामिल थे।
- B.N. Rau ने न तो कोई अनुच्छेद प्रस्तुत किया, न उस पर बहस की, न वोट किया।
- B.N. राउ की भूमिका क्या थी?
- वे संविधान सभा के Constitutional Advisor नियुक्त किए गए थे।
- उन्होंने comparative studies कीं, अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, कनाडा आदि देशों के संविधानों का अध्ययन कर एक रिपोर्ट दी।
- उन्होंने प्रारंभिक मसौदे का एक working draft तैयार किया, जिसे प्रारूप समिति ने खारिज कर दिया और डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता में नए सिरे से मसौदा तैयार किया गया।
- वे नीतिगत निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे।
- Dr. Ambedkar की भूमिका क्या थी?
- वे Drafting Committee के अध्यक्ष थे।
- 141 दिन की बहसों में उन्होंने सैकड़ों बार संविधान के प्रावधानों की व्याख्या की।
- उनके नेतृत्व में संविधान का final draft तैयार हुआ।
- उन्होंने जन अपेक्षाओं, कानूनी दायरे और राजनीतिक विवेक के बीच संतुलन बनाया।
तो क्या एक सलाहकार को “संविधान निर्माता” कहना न्यायसंगत है?
बिलकुल नहीं।
मान लीजिए — एक इमारत का आर्किटेक्ट आपने तय किया, कुछ एक्सपर्ट्स से सलाह ली, लेकिन असली डिज़ाइनर और बिल्डर वही रहा जिसे ज़िम्मेदारी दी गई।
क्या उस सलाहकार को “chief architect” कहेंगे? कभी नहीं।
ठीक वैसे ही B.N. राउ का योगदान सराहनीय हो सकता है, लेकिन उन्हें “संविधान निर्माता” कहना इतिहास का विलयन, फैक्ट्स का बलात्कार और जातिवादी मनोवृत्ति का बौद्धिक बहाना है।
BN राउ को “संविधान निर्माता” कहने की असली मंशा क्या है?
यह कोई तटस्थ या अकादमिक मांग नहीं है — यह ब्राह्मणवादी बौद्धिक पुनरुत्थान का हिस्सा है।
जब संविधान का चेहरा एक दलित – डॉ. अंबेडकर – बन गया, तो कई मानसिक कुंठित समूहों को लगा कि यह “symbolic power” एक वर्ग विशेष के हाथ से निकल गया।
अब वे उस symbolic power को B.N. राउ के बहाने वापस छीनना चाहते हैं — भले ही इतिहास को तोड़-मरोड़ कर क्यों न करना पड़े।
निष्कर्ष: सम्मान देना ठीक है, लेकिन जबरदस्ती निर्माता बनाना नहीं
- B.N. राउ को संविधान के निर्माण प्रक्रिया में सलाहकार के तौर पर सम्मान दिया जा सकता है।
- लेकिन उन्हें “संविधान निर्माता” कहना वैसा ही है जैसे किसी मैनेजर को कप्तान बना देना।
- संविधान सभा की वैधानिकता, लोकतांत्रिक प्रक्रिया और ऐतिहासिक दस्तावेज़ को झुठलाना एक बौद्धिक अपराध है।
यह समय है कि हम इतिहास को उसकी असलियत में देखें — न दलित पूजा में आंख मूंदें, न ब्राह्मण महिमा में तथ्यों को कुचल दें।
संविधान सबका है — और इसकी कहानी झूठ से नहीं, सच्चाई से ही ताकतवर बन सकती है।
लेखक: अधिवक्ता अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट
(संविधान की ऐतिहासिक गरिमा की रक्षा में समर्पित एक स्वर)
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