हिन्दू महासभा को कांग्रेस-आरएसएस गठजोड़ ने मारा!
संघ बना ‘सेफ्टी वाल्व’, अटल बने सेनापति – एक ऐतिहासिक षड्यंत्र का पर्दाफाश!
✍️ एडवोकेट अमरेष यादव


अगर आपको लगता है कि कांग्रेस और संघ (RSS) एक-दूसरे के ‘कट्टर दुश्मन’ रहे हैं, तो ज़रा ठहरिए — इतिहास की परतें उठाइए, तस्वीर पलट जाएगी।

हकीकत ये है कि कांग्रेस ने कभी भी संघ को ख़त्म करने की नीयत नहीं दिखाई, बल्कि उसे “सेफ्टी वाल्व” की तरह इस्तेमाल किया — खासकर हिन्दू महासभा को समाप्त करने के लिए।
और इस राजनीतिक खेल में सबसे प्रभावी मोहरा थे – अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्हें आज संघ-भाजपा के सबसे बड़े ‘दिग्गज’ के रूप में पेश किया जाता है।


🔥 कांग्रेस-आरएसएस की गुप्त डील: “महासभा को खत्म करो”

◾ आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार – कांग्रेस के पूर्व कार्यकर्ता!

बहुत से लोग नहीं जानते कि केशव बलिराम हेडगेवार, जिन्होंने 1925 में संघ की स्थापना की थी, उससे पहले कांग्रेस के कार्यकर्ता थे।
1916 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में शामिल हुए थे।
ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में हिस्सा लिया, लेकिन गांधी की अहिंसा से असहमति के चलते ‘सांस्कृतिक संगठन’ की ओर मुड़े।

लेकिन एक सवाल उठता है —
क्या उन्होंने कभी कांग्रेस का पूरी तरह विरोध किया? नहीं।
संघ की शुरूआती दशकों में कांग्रेस के खिलाफ न तो खुलकर बयान आए, न टकराव की राजनीति हुई।


◾ हिन्दू महासभा और संघ: वैचारिक प्रतिद्वंद्वी, न कि सहयोगी

1930-50 के दशक में हिन्दू महासभा एक संगठित, वैचारिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय संस्था थी।
सावरकर जैसे तेजस्वी नेता इसके प्रतीक थे —

  • जो दलितों के पक्ष में खड़े होते थे
  • जो गोमांस पर पाबंदी के खिलाफ थे
  • जो जातिवाद को हिन्दू समाज की सबसे बड़ी बीमारी मानते थे

संघ इस सामाजिक क्रांति से असहज था।
उसे एक संगठित हिन्दू राजनीतिक दल नहीं, बल्कि ‘ब्राह्मणवादी नियंत्रण में रहने वाला भीड़ संगठन’ चाहिए था।
और कांग्रेस को भी सावरकर जैसे राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक सोच वाले हिन्दू नेता खतरा लगते थे।


🔥 अटल बिहारी वाजपेयी – महासभा को कुचलने का भाजपा मॉडल

1951 में जब जनसंघ बना, अटल वाजपेयी संघ के प्रचारक से नेता बने।
लेकिन उन्होंने कभी हिन्दू महासभा के नेताओं को साथ नहीं जोड़ा।
बल्कि संघ के इशारे पर उन्होंने सावरकर की वैचारिक विरासत को ‘सॉफ्ट-हिन्दुत्व’ में बदलने का अभियान चलाया।

👉 अटल की भूमिका 3 स्तर पर दिखाई देती है:

  1. हिन्दू महासभा को अलग-थलग करना
  2. सावरकर को धीरे-धीरे ‘सांकेतिक’ बना देना
  3. संघ को कांग्रेस के साथ सौदेबाज़ी में लगाना (इमरजेंसी के दौरान संघ का आत्मसमर्पण इसका सबसे बड़ा प्रमाण है)

◾ कांग्रेस और संघ: एक अदृश्य गठबंधन

आपातकाल (1975-77) में संघ पर प्रतिबंध लगा — लेकिन ज़रा गौर करें:

  • संघ ने तब इंदिरा गांधी से माफ़ीनामा लिखा
  • हिन्दू महासभा कभी झुकी नहीं — इसलिए उसे साइडलाइन कर दिया गया

1977 में जब जनता पार्टी बनी, संघ के लोग सत्ता में घुसे, लेकिन हिन्दू महासभा को घुसने नहीं दिया गया।
इसका अर्थ साफ है —
कांग्रेस और संघ दोनों ही हिन्दू महासभा से डरते थे, क्योंकि वह सच बोलती थी और वैचारिक नेतृत्व रखती थी।


🔥 क्यों चाहिए था कांग्रेस को संघ?

कांग्रेस जानती थी कि हिन्दू समाज में उबाल है।
उसका समाधान दो तरीके थे:

  1. या तो महासभा को स्वीकारो,
  2. या कोई ‘नकली हिन्दू संगठन’ तैयार करो जो नियंत्रित हो सके।

संघ ने वही भूमिका निभाई। वह हिन्दुओं की ‘भड़ास’ निकालने वाला सेफ्टी वाल्व बना — जिसे कांग्रेस अपनी रणनीति के अनुसार कभी दबाती, कभी ढीला छोड़ती रही।


📌 निष्कर्ष: संघ कभी विद्रोही नहीं था — वह साजिश से बना था!

  • कांग्रेस ने RSS को ख़त्म नहीं किया — उसे इस्तेमाल किया।
  • RSS ने हिन्दू महासभा को मिटाया — सावरकर की वैचारिक हत्या की।
  • अटल बिहारी वाजपेयी उस हत्या के सबसे बड़े सेनापति थे।

आज भाजपा-संघ जिस ‘हिन्दुत्व’ की बात करते हैं, वह सावरकर का नहीं — संघ-समर्थित सत्ता की चाल है।
और कांग्रेस, जो संघ विरोध का नाटक करती है, वह खुद उसकी जननी रही है।


अब वक्त है कि युवा इतिहास को झूठे पोस्टरों और भाषणों से नहीं, असली दस्तावेजों से पढ़े।
हिन्दू महासभा को खत्म करने का अपराध कांग्रेस और संघ दोनों के माथे पर है — और अटल इस इतिहास के खलनायक थे।


📢 लेखक: एडवोकेट अमरेष यादव
(राजनीतिक विश्लेषक, वैचारिक स्वराज के पक्षधर)


🗣️ अगर आपको लगता है कि इतिहास को फिर से लिखने का नहीं, बल्कि सही पढ़ने का समय है, तो इस पोस्ट को साझा करें और बहस शुरू करें!


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