मऊ जिले की राजनीति सामंतों के हाथ में!

सामंतवाद

मऊ ज़िले की राजनीति आज पूरी तरह से सामंतों और बाहरी नेताओं के कब्ज़े में है। यह वही मऊ है, जिसे कभी PDA (पिछड़े–दलित–अल्पसंख्यक) राजनीति का मजबूत गढ़ माना जाता था। लेकिन अब यहां के वोट तो PDA के काम आते हैं, और सत्ता की चाबी सामंतों और बाहरी चेहरों को थमा दी जाती है।


1. बाहरी नेताओं का कब्ज़ा

मऊ की सबसे बड़ी राजनीतिक त्रासदी यही है कि यहां की चुनावी राजनीति स्थानीय चेहरों से नहीं, बल्कि आयातित नेताओं से संचालित होती है।

  • राजीव राय — बलिया
  • मुख्तार और अब्बास अंसारी — गाज़ीपुर
  • फागू चौहान और दारा सिंह चौहान — आज़मगढ़
  • अरुण राजभर — बलिया

मऊ की ज़मीन पर ये बाहरी चेहरे चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं और राज करते हैं। स्थानीय जनता को सिर्फ़ नारे और वादे मिलते हैं।


2. PDA समाज की बेदखली

मऊ का यादव समाज और PDA समुदाय अब सिर्फ़ पंचायत और प्रधानी तक सीमित कर दिए गए हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में PDA को टिकट तक नहीं दिया जाता। और जहां मौका मिलता भी है, वहां उन्हें हराने के लिए साजिश रची जाती है।


3. सुधाकर सिंह का कबूलनामा — सामंतवाद का असली चेहरा

मऊ की राजनीति में सामंतवाद का सबसे नग्न रूप दिखता है घोसी के विधायक सुधाकर सिंह की करतूतों में।
खुले मंच से उन्होंने खुद कहा कि —

  • कोपागंज ब्लॉक प्रमुख भाजपा प्रत्याशी को जितवाया।
  • बडराव ब्लॉक प्रमुख भाजपा की पूजा मिश्रा को जितवाया।
  • मधुबन में भाजपा प्रत्याशी मूनी सिंह को जितवाया और सपा के अपने ही उम्मीदवार चन्द्रमणि यादव को हरवाया।
  • जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा प्रत्याशी मनोज राय को जितवाया और सपा के रामनगीना यादव को पर्चा भरने ही नहीं दिया।
  • यहां तक कि थाना अध्यक्ष संत लाल यादव को ठाकुर प्रमुख के इशारे पर पिटवाया।

क्या यह PDA की राजनीति है या सामंतों की दासता? PDA का वोट लेकर सपा की कुर्सी पाना और फिर भाजपा–सामंतों के लिए काम करना — यही है मऊ की राजनीति का असली चेहरा।


4. सामंतवाद की सुनियोजित चालाकी

भूमिहार और ठाकुर नेताओं ने PDA राजनीति को जड़ से कमजोर कर दिया है।

  • PDA वोटरों को सिर्फ़ इस्तेमाल किया जाता है।
  • PDA नेताओं को पंचायत और जिला परिषद तक सीमित कर दिया गया है।
  • और विधानसभा–लोकसभा पर बाहरी और सामंतवादी चेहरों का कब्ज़ा है।

5. मऊ की जनता का अपमान

मऊ के लोगों को अब खुद से सवाल पूछना चाहिए:

  • कब तक बाहरी नेताओं के हाथों अपनी राजनीति गिरवी रखेंगे?
  • कब तक PDA सिर्फ़ वोट बैंक बनकर रहेगा, सत्ता से बेदखल रहेगा?
  • कब तक सुधाकर सिंह जैसे विधायक सामंतों और भाजपा की दलाली करते रहेंगे और PDA खामोश बना रहेगा?

निष्कर्ष: मऊ की राजनीति की असली लड़ाई

आज मऊ की राजनीति पूरी तरह सामंतों और बाहरी नेताओं की गुलाम बन चुकी है। PDA सिर्फ़ नारा है, वोट बैंक है, लेकिन सत्ता का हिस्सा नहीं है।
👉 अगर PDA और मऊ की जनता अब भी नहीं जगी, तो आने वाली पीढ़ियाँ यही कहेंगी:
“मऊ का वोट PDA का था, लेकिन राज सामंतों का था।”


✍️ एडवोकेट अमरेष यादव, सुप्रीम कोर्ट

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