बार काउंसिल उत्तर प्रदेश : चुनावी पारदर्शिता और अधिवक्ताओं के अधिकारों पर गंभीर प्रश्न

✍️ By Advocate Amaresh Yadav

उत्तर प्रदेश बार काउंसिल का चुनाव केवल एक संगठनात्मक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रदेश के अधिवक्ता समाज की आवाज़ और भविष्य को निर्धारित करता है। वर्तमान में, अक्टूबर 2025 की परिस्थितियों में, अधिवक्ता समुदाय कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है – चाहे वह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता हो या प्रैक्टिस से जुड़े अनुचित शुल्क और अधिवक्ता अधिकारों का हनन।

1. मतदाता सूची और नामांकन शुल्क – लोकतंत्र पर प्रश्न

अधिवक्ता संगठन तभी मज़बूत होंगे जब हर अधिवक्ता की भागीदारी निष्पक्ष रूप से सुनिश्चित की जाए। लेकिन वर्तमान में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर त्रुटियां सामने आई हैं – नामों का ग़ायब होना, गलत प्रविष्टियां और लापरवाह संशोधन। यह स्थिति अधिवक्ता समाज के लोकतांत्रिक अधिकारों पर सीधा प्रहार है।

इसके साथ ही, ₹1.25 लाख का नामांकन शुल्क एक ऐसी बाधा है जो केवल आर्थिक रूप से सक्षम उम्मीदवारों को चुनाव में आने देता है। यह व्यवस्था प्रतिभा और प्रतिनिधित्व की भावना को चोट पहुँचाती है। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले पर अधिवक्ताओं को जाना पड़ा है। सवाल यह है कि क्या बार काउंसिल चुनाव सिर्फ़ अमीर वकीलों तक सीमित रह जाए?

2. सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस और नामांकन शुल्क विवाद

नई पीढ़ी के अधिवक्ताओं पर ₹14,000 तक का शुल्क लादना पूरी तरह से अनुचित और न्यायालय के पूर्व आदेशों के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कहा है कि यह शुल्क ₹750 से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद बार काउंसिल द्वारा मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है। इससे यह संदेश जाता है कि नए अधिवक्ता का स्वागत करने की जगह उस पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है।

3. Advocates (Amendment) Bill, 2025 – अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर कुठाराघात

हाल ही में आए Advocates (Amendment) Bill, 2025 में ऐसा प्रावधान (धारा 35A) किया गया है जिससे अधिवक्ताओं की सामूहिक आवाज़ को दबाने का प्रयास हो रहा है। वकीलों का हड़ताल करना या विरोध दर्ज कराना केवल उनका अधिकार ही नहीं बल्कि एक लोकतांत्रिक परंपरा भी है। इसे अपराध बना देना कहीं न कहीं अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर कुठाराघात है।

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4. संस्थागत जवाबदेही – न्यायपालिका और अधिवक्ताओं का रिश्ता

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल में कहा है कि बार काउंसिल की हड़ताल संबंधी संस्तुतियों को मान लेना न्यायिक दुराचरण हो सकता है। यह टिप्पणी अधिवक्ताओं और न्यायपालिका के बीच विश्वास और संवाद की कमी को उजागर करती है। हमें ऐसी परिस्थितियों से बचना होगा और संतुलित समाधान खोजना होगा, जिससे न्यायपालिका और अधिवक्ता दोनों अपनी-अपनी भूमिका का सम्मान करते हुए कार्य कर सकें।

मेरी चिंता और संकल्प

मैं, अधिवक्ता अमरेष यादव, मानता हूँ कि बार काउंसिल को अब अपने मूल उद्देश्य की ओर लौटना होगा –

  • अधिवक्ताओं के हितों की रक्षा,
  • चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना,
  • शुल्क संरचना को न्यायसंगत करना,
  • और अधिवक्ता समाज की सामूहिक आवाज़ को दबाने की बजाय उसे मज़बूती देना।

हमारा लक्ष्य केवल चुनाव जीतना नहीं बल्कि अधिवक्ताओं का विश्वास और सम्मान जीतना होना चाहिए।

निष्कर्ष

आज उत्तर प्रदेश का अधिवक्ता समाज एक संगठनात्मक मोड़ पर खड़ा है। अगर हम इन मुद्दों को अनदेखा करते रहे, तो आने वाली पीढ़ी हमें क्षमा नहीं करेगी। यह समय है कि हम सब एकजुट होकर लोकतांत्रिक भागीदारी, सुलभ न्याय और अधिवक्ता गरिमा की रक्षा करें।


Amaresh Yadav

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